मैं शब्दों से खेलता हूँ
मैं शब्दों से खेलता हूँ
न जाने क्यों परेशान हो जाते हैं कुछ लोग
मेरी क्या खता है जो लिखता हूँ मैं
अंदर ही अंदर क्यों जल जाते हैं कुछ लोग
जिनकी किस्मत में ही जलना है
वह तो यूँ ही जल जल कर मरते रहेंगे
पीठ पीछे करते रहेंगे दूसरे की बुराई
मुंह पर बहुत तारीफ करते रहेंगे
शब्दों से हमेशा मैं मरहम हूँ लगाता
दुख सुख में सबके काम हूँ आता
कड़वा बोलना फ़ितरत में नहीं मेरी
मीठा बोलकर सबको अपना हूँ बनाता
कौन क्या कहता है परवाह नहीं करता
धुन का पक्का हूँ मैं नहीं डरता
जो अच्छा लगे उसे अपनाता हूँ
झूठे मक्कारों से मैं बात नहीं करता
लिखता रहूंगा जब तक मेरी कलम में रहेगी जान
कलम ही बन गई है अब मेरी पहचान
दिल में बस एक यही है अरमान
लिखे वही कलम जिससे होता रहे जन कल्याण
— रवींद्र कुमार शर्मा