वादा
पूरे 15 दिनों के बाद स्नेहा अस्पताल से रिलीव होकर आई, आते ही किचन और घर संभालने में लग गई. पंखे के परों के साथ उसका अतीत भी घूमने लगा.
आइ.सी.यू. में 12 दिन उसको जमीन पर पांव ही नहीं रखने दिया गया. वॉर्ड में शिफ्ट होने के लिए उसने जमीन पर पांव रखा, पर यह क्या! लड़खड़ा गई वह! अब घर में कैसे चलेगी! कैसे काम करेगी! उसे चिंता लग गई.
“चलना तो पड़ेगा ही!” उसने अपने आप से वादा किया.
उम्मीद का दामन थामे वह अस्पताल के दो कर्मचारियों की मदद से चलने का प्रयास करने लगी. प्रयास अभ्यास में बदल गया, अभ्यास विश्वास में और फिर विश्वास सफलता में.
खुद से किया गया वादा उसने पूरा कर लिया था.
— लीला तिवानी