जीत का सेहरा
“कितना खूबसूरत पल था वह सम्मान से सम्मानित होना!” सर्वश्रेष्ठ कवयित्री के रूप में सम्मानित होकर टैक्सी में घर लौटती हुई साधना सोच रही थी.
“मैंने किया ही क्या था! बस एक मंच पर एक नकारात्मक कविता पढ़कर प्रोत्साहन के लिए एक सकारात्मक कामेंट ही तो लिखा था!”
“आशा के दीप जलाए रखिए
उम्मीद को मीत बनाए रखिए.”
यह कामेंट ही खूबसूरत सकारात्मक कविता में ढल गया था. वही उसने “विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस” के अवसर पर आयोजित एक राष्ट्रीय कविता प्रतियोगिता में भेज दी थी. प्रतियोगिता में वह कविता प्रथम पुरस्कार के लिए चयनित की गई थी. अब उसके हाथ में थी खूबसूरत ट्रॉफी, 11,000 रुपये का चेक और मनमोहक प्रशस्ति पत्र.
उम्मीद को मीत बनाए रखने के एक कामेंट ने उसके शीश पर जीत का सेहरा सजा दिया था.
— लीला तिवानी