काम बोलता है!
“सर, मैं रोहित बोल रहा हूं.”
“सब खैरियत तो है न! इतनी देर रात गए फोन कर रहे हो?”
“सर एक ख़ास बात करनी थी.” रोहित ने हिचकते हुए कहा.
“बोलो, बोलो.” बॉस ने उसे आश्वस्त किया.
“सर, मैंने सुना है आप रोहन को तरक्की देने वाले हैं!”
“तो!”
“सर, आप पता नहीं जानते हैं या नहीं, एक तो काम का बहुत ढीला है, दूसरे आपकी बुराई भी बहुत करता है!”
“चलो अच्छा हुआ तुमने बता दिया! मुझे तो पता ही नहीं था! मैं तो उसे डिप्टी चेयरमैन बनाने वाला था! तुम क्या चाहते हो?”
“सर, आप अगर मुझे कंसीडर करें तो!…” आगे वह बोल नहीं पाया.
“अच्छा, सोचता हूं. कल ऑफिस में मिलते हैं.” बॉस ने फोन रख दिया.”
खुशी के मारे रोहित का मन बल्लियों उछलने लगा! अब पता चलेगा बेटे को, मुझे सिखाता था.
लकदक सूट-बूट चढ़ाए वह ऑफिस की सीढ़ियां चढ़ रहा था कि चपरासी ने उसे बॉस के बुलावे का संदेश दिया.
अपनी सीट पर रोहित ने ब्रीफकेस रखा, एक बार फिर अपने सूट-बूट पर नजर डाली और चल दिया बॉस का दरवाजा खटखटाने.
“आओ-आओ रोहित, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था. ये लो अपना इनाम!” बॉस ने एक लिफाफा पकड़ाते हुए कहा.
“थैंक्यू-थैंक्यू” कहते हुए रोहित बिना लिफाफा खोलकर देखे ही चल पड़ा.
“ओहो! ये क्या हुआ? रोहन को प्रोमोशन और मुझे डिमोशन!”
उल्टे पांव चलते हुए उसने बॉस का दरवाजा खटखटाया.
“येस, अंदर आओ.” सुनकर वह अंदर आया.
“सर…” लिफाफे की ओर इशारा करते हुए वह इतना ही कह पाया!
“मिस्टर रोहित, बॉस की नजर बोलती है, मातहत का काम बोलता है! आप अपनी सीट (औकात) पर जा सकते हैं.”
काम की तरह रोहित की नजर भी नीची हो गई थी.
— लीला तिवानी