टूटती श्रृंखलाएं
संयुक्त परिवार आज़,
खत्म हो रहा है।
सुकून देने वाली ताकत,
अब शेष नहीं बचा है।
यह क्या हो गया है,
जड़ चेतन मन में,
अब नहीं दिख रहा है।
भरा-पूरा परिवार एक,
आन बान और शान थीं।
मुहल्ले में खुशहाली लाने में
इसकी बड़ी निशान थीं।
मुहल्ले में एक उदाहरण था,
नवचेतना से यह बात कही जाती थी,
लगता पुनर्जागरण काल,
का उद्भव और विकास का,
सम्पूर्ण आवरण था।
इज्ज़त देकर सम्मानित,
सदैव यह संयुक्त परिवार होता था।
शान में कसीदे पढ़ते हुए,
रहने का मान -सम्मान,
हमेशा यहां मिलता था।
क़तार में रहते हुए खुशहाली ,
अक्सर परिवार संग बांटी जाती थी।
महिलाएं संकोच छोड़ कर,
घर आंगन में संयुक्त रूप से,
उधम खूब मचातीं थीं।
चाचा चाची ताई ताऊजी का,
सुन्दर और स्नेहिल भाव में,
प्यार और स्नेह यहां मिलता था।
दादा- दादी संग बुआ का रंग,
यहां खूब दिखता था।
खेती में खुशहाली लाने में,
संयुक्त परिवार संग मिलकर,
श्रम करना एक संस्कार था।
हमेशा मददगार बनने का,
मिलता था सुखद अवसर,
हमेशा याद करते हुए,
दिखता सुन्दर व्यवहार था।
श्रम और रोजगार यहां,
नवीन जोश और उत्साह से,
किए जाने का यहां रंग था।
घर-परिवार में सुख-समृद्धि का,
सबमें मधुर संगीत संग,
दिखता खूब उमंग था।
घर घर में आज़ सुकून देने वाली ताकत,
कमजोर हो गई है।
खुशियां और आनन्द से,
सब मरहूम हो रही है।
टूटती श्रृंखलाएं आज़ बहुत बातें बता रही है,
परिवार में आजकल एक दीवार खड़ी की,
जा रही है ।
यह आज़ परिवार की टूटती श्रृंखलाएं हैं,
तकलीफ़ देने वाली वह रहीं हवाएं हैं।
— डॉ. अशोक