लेकर हाथ तिरंगा
लेकर हाथ तिरंगा।
रैली,धरना,हड़तालों में
होता है अब दंगा।
नहीं बोलने की आज़ादी,
लोग लगाते नारे।
रोक सड़क की आवाजाही,
बैठें पैर पसारे।
लोकतंत्र की देखो खूबी,
करे झूठ को नंगा।
सारे मंचों से जो पढ़ते ,
जनता का चालीसा।
झूठे वादों की चक्की में,
सबने उसको पीसा।
कोई रोता बदहाली पर,
कोई कहता चंगा।
व्याख्या में जब संविधान की,
घटतौली-सी होती।
पीट-पीटकर माथा अपनी,
भारत माता रोती।
हमको पावन करनी होगी,
मैली मन की गंगा।
लेकर हाथ तिरंगा।।
— डाॅ बिपिन पाण्डेय
पटल पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय