ईश्वर दो ऐसा वरदान
जगमगाता दीप मैं बन सकूं,
हर हृदय में स्नेह मैं भर सकूं ।
प्रीति की रोशनी हर किसी को दे सकूं ।।
ईश्वर दो ऐसा वरदान…
जग से सारा तम मैं मिटा सकूं,
तेज आंधियों से मैं लड़ सकूं ।
डूबते को किनारे तक पहुंचा सकूं ।।
ईश्वर दो ऐसा वरदान…
जगहित गरल मैं पी सकूं,
दुनिया को अमृत मैं दे सकूं ।
दुःखी हृदय में मैं उल्लास भर सकूं ।।
ईश्वर दो ऐसा वरदान…
राष्ट्रहित हंसते-हंसते प्राण मैं तज सकूं ,
दुश्मन से अंतिम सांस तक मैं लड़ सकूं।
भारत भू का सम्बल बन सकूं ।।
ईश्वर दो ऐसा वरदान…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा