गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल 

मुश्किलों में हैं घिरे तो गुनगुना कर देखिए

इन उदासी के पलों में मुस्कुरा कर देखिए

आप भी हैं ग़र परेशां नफ़रतों के दौर से,

प्यार के कुछ फूल गुलशन में उगाकर देखिए

ज़िंदगी में जीत ही मिलती नहीं है हर दफ़ा,

हार को भी जीत जैसा ही पचाकर देखिए

नेमतें रब की बरसते देखना चाहें अगर,

एक भूखे को कभी रोटी खिलाकर देखिए

क्या पता कोई मुसाफ़िर ढूँढता हो रास्ता,

देहरी पर रोज़ इक दीपक जलाकर देखिए

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’ 

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)