कविता

खो गया है बचपन

खो गया है बचपन मेरा, नफरत की दीवारों में,
कहां रहा है इतना ताप अब, जलते हुए अंगारों में!
जब मैं रोऊं झुंझना नहीं, मोबाइल पकड़ा देते हो,
लोरी के बदले पॉप सांग्स से, दिल मेरा बहला लेते हो.
ममता से भीगी नवास को, आज तलक मैं तरस रहा,
कविताओं में ममता का रस, टप-टप-टप कर बरस रहा.
शिशु विकास का दिवस मनाकर, खुद ही खुश हो लेते हो,
पर विकास के नाम पे मुझको, आया को सौंप क्यों देते हो?
बाहर के खेलों से मुझको, क्यों इतना महरूम रखा?
वीडियो गेम ही खेलने देते, लूडो तक का न स्वाद चखा!
मां के हाथ का खाना चाहूं, पीजा-बर्गर मुझे मिले,
टू मिनट की मैगी बनाकर, आया के मन का कमल खिले.
अपना बचपन याद करो और मुझको भी वैसा ही दे दो,
ज्यादा की नहीं चाह मुझे है, मेरावोबचपनलौटादो,
बचपन छीनो न मुझसे मेरा, बच्चा मुझे ही रहने दो,
बच्चा तुम्हारा कुछ नहीं सीखा, कहते हैं जो उन्हें कहने दो.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244