कविता – बाल श्रम
जब देखती हूँ किसी छोटे बच्चों को श्रम करते ,
मन अंदर से दुखी हो उठता यह कैसी विडम्बना ,
बचपन तो अच्छा होता इनका बचपन कही खो जाता,
बचपन में तो न चिंता होती न कोई फिक्र,
जिंदगी के वो पल सब खुशनुमा होते,
जब बचपन में कोई दुख नहीं होता,
प्रभु भी कैसे कैसे खेल रचाता,
बचपन में गरीबी उनके लिये अभिशाप बन जाता,
बाल श्रम करते जो बच्चे उनका बचपन छिन जाता,
जो उम्र होती किताब, पेन से लिखने पढ़ने ,
उन हाथों में मजदूरी के सामान होते,
कैसे कोई इतना दर्द छोटी सी उम्र में सह पाते,
समाज,प्रशासन बस देखता ही रह जाता,
क्या उनका हक बचपन पर नहीं ,
इसका उत्तर तो किसी के पास नहीं,
जब हम सब मिलकर उनकी मदद करें,
शायद वो भी बचपन को जी पाएंगे,
पढ लिखकर वो भी साक्षर बन बन पाएंगे,
बच्चे होते राष्ट्र के निर्माता यहीं कल के नेता होते,
बचपन पर सबका समान अधिकार इनका हक होता,
देश के यहीं कर्णधार सही दिशा इनको प्रदान करें[….]
— पूनम गुप्ता