कविता

शब्दों का बोलबाला

शब्द या शब्दों का क्या? शब्दों की बड़ी अजब गजब माया है,हर कोई शब्दों को कहाँ जान पाया है?जो शब्दों को जैसे जान पाता हैउसका जगत में वैसा ही नाम होता है।वैसे तो शब्द अक्षरों का तालमेल ही नहींक्योंकि शब्द ही शिव है, शब्द ही ब्रह्म है,शब्द ही आदि अनादि ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य है।शब्द ही पूजा, प्रार्थना, आरती, नमाज हैसंत महात्माओं का गुरु, गीता ज्ञान है।शब्द वेद, कुरान, ब्रह्मज्ञान है,शब्द परम सत्ता आदि अनादि अनंत है,शब्द ही तो परम सत्य, पारब्रह्म है। साथ ही शब्द रुलाते और हंसाते भी हैंशब्द झगड़े ही नहीं प्रेम की नींव भी रखते हैंशब्द दुश्मन ही नहीं दोस्त भी बनाते हैंशब्द ही गुमराह करते और तीर की तरह चुभते भी हैंशब्द मन मुटाव के अलावाक्रोध की नींव भी रखते हैं, शब्द ही शीतलता की ठांव बनते हैं।शब्द निंदा नफरत ही नहीं करते, कराते हैं,शब्द ही प्रशंसा और सम्मान भी दिलाते हैं शब्द ही माता पिता, रोग, शोक चिंता और चिता भी हैं।शब्द ही जन्म मरण का बोध कराते हैं साथ साक्षर निरक्षर की पहचान कराते हैं।शब्द ही शादी और तलाक कराते हैंतो शब्द ही राम भरत का मिलाप भी कराते हैं शब्द ही राजा प्रजा, कृष्ण और राधा हैशब्द ही राम सीता, वेद पुराण और गीता हैशब्द धरती आकाश, अंधकार, प्रकाश भी है।शब्द तीखे बाण और जीवन प्राण भी हैंअखिल ब्रह्माण्ड में शब्दों का बोलबाला हैहर कहीं, हर किसी को शब्दों ने ही संभाला है।किसी के हिस्से में शहद सा मीठा तोकिसी के हिस्से में आया तीखे शब्दों का प्याला है,शब्दों का ही हर ओर दिखता बोलबाला हैहम हों या आप हर कोई शब्दों का ग्वाला है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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