गुणों पर चर्चा से लाभ
मनुष्य का मस्तिष्क दो तरह से कार्य करता है। एक सकारात्मक रूप में दूसरा नकारात्मक रूप में। इन दोनों में नकारात्मक मस्तिष्क अधिक सक्रिय रहता हैं। एक साधारण व्यक्ति अपने पूरे दिन में अपने नकारात्मक मस्तिष्क को अधिक सक्रिय रखता है इसलिए पूरे दिन की बातचीत में 75% बातें लोगों की बुराई तथा अवगुणों को लेकर होती है। इस तरह मनुष्य का मस्तिष्क और अधिक नकारात्मक होता जाता है। उसके मन मस्तिष्क में सदैव बुराइयां चलती रहती हैं। ऐसा व्यक्ति अपने आपको भूल कर सदैव दूसरों का मूल्यांकन करने में लगा रहता है। ऐसे लोग
किसी के रूप-रंग,व्यवहार या पृष्ठभूमि के आधार पर उसके बारे में धारणा बना लेते हैं। इससे उन्हें बात करने का एक मुद्दा मिल जाता है।
अगर हम सिर्फ हर किसी की अच्छाइयों और गुणों को ढूंढे और उन्हीं की चर्चा करें तो हम कई प्रकार से लाभान्वित हो सकते हैं।
सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि हमारा सकारात्मक मस्तिष्क सक्रिय होगा। हमारा मन-मस्तिष्क सदैव सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहेगा। सकारात्मक सोच हमें अपने जीवन के बारे में बेहतर निर्णय लेने और दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद कर सकती है। इससे हम यह महसूस करेंगे कि हमारा शरीर और दिमाग काम के साथ-साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों के प्रति भी ज्यादा सजग हो गया है।
सकारात्मक सोच के माध्यम से व्यक्ति का विकास होता है और नकारात्मक सोच के कारण वह विनाश को प्राप्त होता है। ज्ञानेंद्रियों के द्वारा व्यक्ति को वातावरण से तरह-तरह के विचार मिलते हैं और इन विचारों पर सोचकर वह निश्चय करता है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
दूसरा लाभ यह है कि जब हम दूसरों के गुणों या अच्छाइयों पर चर्चा करेंगे तो हम बात कम करेंगे। हमारा मन शांत होगा क्योंकि लोग निंदा रस में ज्यादा आनंद लेते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि मौन रहने से व्यक्ति अधिक समझदार और उत्पादक बनने की ओर अग्रसर होता है। इससे उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों में सुधार हो सकता है।
कम बोलने से हमें आत्मकेंद्रित व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है। कम बोलना या मौन एक शक्ति नियंत्रण की साधना है। कम बोलकर हम दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण को महत्व देते हैं और उनसे सीखने के इच्छुक होते हैं।
और तीसरा लाभ यह है कि हम किसी की अच्छाइयों पर चर्चा करके निंदा रस से बचेंगे। निंदा और किसी का अपमान करने से हम पाप के भागीदार बनते हैं। इसको करने वाला इंसान अक्सर अपने मूल काम को भूल जाता है और बाकी लोगों से पीछे रह जाता है। ऋग्वेद में कहा गया है कि दूसरों की निंदा करने से दूसरों का नहीं बल्कि खुद का ही नुकसान होता है। निंदा से ही मनुष्य की बर्बादी की शुरुआत होती है।
किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के अहं को तुष्ट करने के क्रम में दूसरे के चरित्र का नकारात्मक चित्रण ही निंदा कहलाता है। ऐसे लोगों को निंदक कहा जाता है। संत कबीर का निंदक दूसरा था जो आज का निंदक नहीं है आज के निंदक का उद्देश्य सुधार करना नहीं वरन अपयश करना होता है। उसका काम किसी की बुराई करके अपने मन की ईर्ष्या,कुंठा और प्रतिशोध की भावना को शांत करना है।
निंदा करने की वजह से व्यक्ति स्वयं की बुराई नही देख पाता है। जब निंदा करना एक आदत बन जाती है,तब इंसान हर वक़्त दूसरों में कमियाँ और बुराई ढूंढ़ने लगता है। उसका सकारात्मक नजरिया धीरे-धीरे नकारात्मक हो जाता है। निंदा करने से किसी को कुछ नहीं मिलता केवल स्वयं की हानि होती है इसलिए गुणों पर चर्चा करने से हम निंदा रस से बच सकते हैं।
चौथा और सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि जब हम किसी के गुणों पर चर्चा करेंगे। तब हम उन गुणों को अपने अंदर भी देखना चाहेंगे। इस तरह हमारे अंदर सुधारात्मक प्रवृत्ति जागृत होगी। हम दूसरों के व्यक्तित्व से प्रेरणा ले सकेंगे।
हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम सदैव दूसरों की अच्छाई या गुणों को ही देखेंगे बुराई को नहीं और सदैव अच्छाइयों की चर्चा करेंगे। जीवन में जिससे भी मिलेंगे उसके अंदर अच्छाइयों को ढूंढेंगे।
अपने परिवार के लोगों की अच्छाइयों को ढूंढकर उसपर चर्चा करेंगे। इस तरह हम अपने अंदर सुधार करके अपने परिवार व रिश्तों को टूटने से भी बचा सकते हैं। गुणों पर चर्चा करके हमारा चेहरा सदैव खिला- खिला रहेगा। हम सदैव हंसते मुस्कुराते रहेंगे
अंत में…
करो गुणों की चर्चा आत्म सुधार होगा।
आत्म सुधार करके जीवन सफल होगा।
— डॉ. निशा नंदिनी भारतीय