दोहा-गीतिका – रामनीति ही चाहिए
नर-नारी सुख दुःखमय,विविध रूप संसार।
राम सदा रक्षा करें, बरसे प्रेम अपार।।
पुरी अयोध्या धाम में,बरसे भक्ति – पीयूष,
सरयू की कल-कल बहे, अमृतवत जलधार।
सबके ही श्रीराम हैं,कण-कण सदा निवास,
राजनीति दूषित करे, अपना करे प्रचार।
समदर्शी प्रभु राम हैं, सबके हृदय निवास,
जातिभेद उनमें नहीं,बरसे सबको प्यार।
रामनीति ही चाहिए, वही राम का राज,
मनमानी करते यहाँ, नेता गण अतिचार।
शबरी, केवट, गीध को, गले लगाते राम,
पवन पुत्र हनुमान को, सीता करें दुलार।
‘शुभम्’ मुखौटा में छिपे, रावण क्रूर अनेक,
दंड उन्हें कैसे मिले,करना यही विचार।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’