छाछ बिलोती मेरी अम्मा
छाछ बिलोती मेरी अम्मा।
करे मथानी धम्मक – धम्मा।।
सूरज ने निज आँखें खोली।
कुक्कड़ कूँ की सुनते बोली।।
गूँज उठी ध्वनि रुनझुन रुम्मा।।
छाछ बिलोती मेरी अम्मा।।
गाढ़ा दही मथानी डाला।
चमचे से कुछ दही निकाला।।
किया गाल पर मेरे चुम्मा।
छाछ बिलोती मेरी अम्मा।।
पानी थोड़ा गरम मिलाया।
चला मथानी उसे हिलाया।।
सोम शनिश्चर या हो जुम्मा।
छाछ बिलोती मेरी अम्मा।।
माखन तैरा ऊपर आया।
गाढ़ा- गाढ़ा बहुत लुभाया।।
बादल का ज्यों बनता गुम्मा।
छाछ बिलोती मेरी अम्मा।।
दोनों हाथ चलाती जाती।
लवनी ऊपर छाती आती।।
करे मथानी ज्यों परिकम्मा।
छाछ बिलोती मेरी अम्मा।।
बिस्तर छोड़ पास मैं आया।
देखी लवनी मुँह भर लाया।।
मुझे खिलाई उम्मा – उम्मा।
छाछ बिलोती मेरी अम्मा।।
लवनी ‘शुभम्’ स्वाद से खाता।
भर-भर लौंदा चट कर जाता।।
और – और दो लवनी – गुम्मा।।
छाछ बिलोती मेरी अम्मा।।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम्’