राम से बड़ा राम का नाम
हाल ही में जैनाचार्य परम पूज्य विद्यासागरजी और सुधासागरजी ने भी राम भगवान की व्यापकता पर बहुत ही महत्वपूर्ण ज्ञान दिया था। तुलसीदासजी सगुण और कबीरदासजी निर्गुण राम के उपासक, नानकदेवजी भी राम को मानते थे। वास्तविकता यह है कि एक ओर जहां जैन रामायण है तो दूसरी तरफ भगवान बुद्ध ने भी राम का उल्लेख किया है, इसलिए राम सबके हैं और राम सबमें हैं।
असाध्य रोगों और निर्भीकतापूर्वक मानव जाति को अपना शिकार बनाने में सक्षम तनाव को देखते हुए भगवान राम अथवा राम शब्द की दिव्यता विषयक श्रीरामचरितमानस में दो चौपाइयां अनुपम हैं-
मंत्र महामनि बिषय ब्याल के।
मेटत कठिन कुअंक भाल के।।
इसका भावार्थ है कि भाल पर लिखें दुर्भाग्य को सौभाग्य में पलटना है, तो राम नाम लीजिये। मैं कर्मज रोगों अथवा प्रज्ञा अपराध के कारण होने वाले असाध्य रोगों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए राम नाम को दिव्य औषधि मानता हूँ। देशभर में अपने उद्बोधन में मैं इस बात को रेखांकित भी करता हूँ। गोस्वामी तुलसीदासजी ने एक दोहा श्रीरामचरितमानस में लिखा है, जो लौकिक और पारलौकिक सुखों की प्राप्ति करवाता है-
राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरीं द्वार ।
तुलसी भीतर बाहरेहूँ जौं चाहसि उजियार ।।
भावार्थ है कि जीभ पर राम को विराजमान कर दीजिए, राम का नाम शरीर के भीतर और बाहर की शुचिता और निरोगिता का उजियाला करने में समर्थ है, इसलिए राम का नाम लेते रहें। एक और चौपाई है, राम नाम जपते रहो, जब लग घट में प्राण, कभी तो दीनदयाल के भनक पड़ेगी कान। राम नाम की लूट है, लूट सकें तो लूट, अन्तकाल पछतायेगा, जब प्राण जाएंगे छुट।
राम नाम है, दिव्य रसायन
वास्तव में हमारे शरीर के सभी कार्यकलाप रसायनों के कारण ही सम्पन्न होती हैं। और राम-राम जपने से रसायनों का सकारात्मक सन्तुलन होने लगता है, तनावकारी रसायन कम हो जाते हैं और रोग प्रतिरोधी शक्ति में बढ़ोतरी हो जाती है, हनुमान चालीसा में हनुमानजी के लिए कहा गया है, राम रसायन तुम्हरे पासा। ये राम रसायन क्या है, इसकी थोड़ी-सी झलक अमेरिका के सैन डियागो हैल्थ केयर सिस्टम के जुल बोर्मेन के एक शोध से प्रकट हुई है। उनका कथन है कि यदि राम-राम अथवा संस्कृत के मन्त्र को बार-बार जपा जाए तो चिन्ता, तनाव, अनिद्रा, अवांछित विचारों सहित बहुत सी मानसिक समस्याओं से उत्पन्न नकारात्मक मनोशारीरिक प्रभाव काफी हद तक कम हो जाते हैं। इसी कारण से भारत में अभिवादन के लिए जय रामजीकी, राम-राम, राम-राम सा और भारत के सभी प्रान्तों में करोड़ों नागरिकों, स्त्री-पुरुषों के नाम के साथ राम शब्द इसीलिए जुड़ा हुआ है ताकि राम शब्द का उच्चारण स्वत: होता रहे।
गुड मॉर्निंग या राम-राम
सम्भवत: पन्द्रह-बीस वर्ष पहले की बात है, मैं रेलयात्रा कर रहा था, एक महानुभाव ने अपने सहयात्री को गुड मॉर्निंग के उत्तर में कहा था कि अभिवादन के इस शब्द की पृष्ठभूमि में “सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर” है, जो हमारे देश में कम ही होता है। ठण्डे देशों में प्रतिदिन सूर्य के दर्शन नहीं होते हैं, बल्कि लगभग दो सौ दिन ही दिखाई देते हैं। सूर्य किरणों की कमी के कारण वहां के लगभग 20% नागरिकों को सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर हो जाता है, जिसका उपचार अत्यधिक कठिन होता है। इसलिए वे प्रार्थना करते हैं और शुभकामनाएं देते हुए कहते हैं गुड मॉर्निंग ताकि सूर्य के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो सकें। हमारे देश में तो सूर्य भगवान के दर्शन वर्षा ऋतु में भी बहुधा हो जाते हैं, इसलिए ऐसी शुभकामनाओं का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है, दूसरी तरफ राम-राम या जय श्रीकृष्ण या राधे-राधे, जय-जय सियाराम अथवा जय जिनेन्द्र, जय रघुनाथजी आदि सभी उद्बोधन हमें हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों तथा सम्पन्नता का स्मरण करवाते हैं। हम अपने आराध्यों को केवल अपनी जीभ पर ही धारण नहीं करते अपितु हमारे ये शब्द अपने कम्पनों से मन-मस्तिष्क में भी सूक्ष्म रासायनिक परिवर्तन करने में सक्षम होते हैं, मन्त्रों पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का कथन है कि यदि आप मन्त्रों का अर्थ नहीं समझते हैं या उन पर आपको विश्वास नहीं भी हो तो भी उनका सकारात्मक प्रभाव पड़ते ही हैं।
गांधीजी और रामनाम: कुदरती उपचार नामक पुस्तक तथा आत्मकथा में गांधी ने रामनाम को रामबाण बताते हुए लिखा है। रामनाम सब जगह मौजूद रहनेवाली रामबाण दवा है, यह शायद मैंने सबसे पहले उरुलीकान्चन में ही साफ- साफ जाना था। जो उसका पूरा उपयोग जानता है, उसे जगत में कम से कम बाहरी प्रयत्न करना पड़ता है। फिर भी उसका बड़े से बड़ा काम होता है। मैं जितना ज्यादा विचार करता हूँ, उतना ही ज्यादा यह महसूस करता हूँ कि ज्ञान के साथ हृदय से लिया हुआ रामनाम सारी बीमारियों की रामबाण दवा है।” (उरुलीकान्चन, २३ मार्च १९४६)
महर्षि चरक ने अपनी संहिता [अ. 37, श्लोक 311] में लिखा है “चराचर के स्वामी विष्णु के हजार नामों में से एक का भी जप करने से सब रोग शांत होते हैं।” राम भी भगवान विष्णु का ही एक नाम है।
राम नाम है, अत्यन्त दिव्य महामंत्र
राम नाम की महिमा पर एक बड़ी सुन्दर कथा है। एक भक्त की सेवा से एक बहुत पहुंचे हुए संत प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसे कहा कि मैं तुम्हे एक ऐसा मन्त्र दे रहा हूँ, जो तुम्हारा समग्र रूप से कल्याण करेगा। भक्त प्रसन्न हो गया। महात्माजी ने उसे राम नाम का मन्त्र दिया, तो वह उदास हो गया तथा अविश्वास उसकी मुखमुद्रा से झलकने लगा। महात्माजी उसके मनोभावों को समझ गए। उन्होंने अपनी कुटिया से निकाल कर एक सुन्दर-सुघड़ पत्थर दिया और कहा कि बाजार जाओ, सब्जी वाले, पंसारी, सोने-चांदी के
व्यापारी और फिर अंत में राज्य के सबसे बड़े जौहरी के पास जाना और इसका मूल्य पूछकर फिर से मेरे पास आना।
राम जैसे साधारण मन्त्र को पाकर खिन्नमना भक्त सभी के पास गया। सब्जी वाले ने पत्थर को तौलने के बाट के रूप में खरीदने की बात की और आधा सेर सब्जी देने की बात की। पंसारी ने कुछ अधिक मूल्य देने की बात की। सोने के व्यापारी ने पांच हजार रुपए देने की बात की। अन्त में जब वह राज्य के जौहरी के पास गया तो उसने भक्त से कहा कि आप इस दुकान के स्वामी बन सकते हैं और बदले में यह दिव्य रत्न मुझे दे दीजिए। भक्त को बात समझ में आ गई कि रामनाम ही परम मन्त्र और परम सत्य है।
— डॉ. मनोहर भण्डारी