मुक्तिधाम-जीवन का सत्य
जीवन का तो अंत सुनिश्चित,मुक्तिधाम यह कहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,नाम ही बाक़ी रहता है।।
रीति,नीति से जीने में ही, देखो नित्य भलाई है।
दूर कर सको तो तुम कर दो,जो भी साथ बुराई है।।
नेहभाव ही सद्गुण बनकर,पावनता को गहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,नाम ही बाक़ी रहता है।।
मुक्तिधाम में सत्य समाया,बात को समझो आज।
साँसें तो बस गिनी-चुनी हैं,मौत का तय है राज।।
बड़ा सफ़र है मुक्तिधाम का,मोक्ष को तो जो दुहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,नाम ही बाक़ी रहता है।।
रहे मुक्ति की चाहत सबको,सच्चाई को जानो।
मोक्ष मिले यह जीवन जीकर,बात समझ लो,मानो।।
कितना भी हो बड़ा राज्य पर,कालचक्र में ढहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,नाम ही बाक़ी रहता है।।
मुक्तिधाम तो बड़ा तीर्थ है,सबको जाना होगा।
मौत का नग़मा अनचाहे ही,सबको गाना होगा।।
समझ न पायें भले आज हम,काल नित्य पर बहता है।
जीवन तो बस चार दिनों का,नाम ही बाक़ी रहता है।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे