कविता – खुद से पहचान
मैं किसी के जैसी नहीं बनना चाहती हूँ
जैसी हूँ खुद को वैसे ही पसन्द करती हूँ
किसी की राय मेरे बारे में क्या है
यह मेरे लिये कोई मायने नहीं रखता है
प्रभु ने धरा पर मुझे भेजा है
मैं उसको धन्यवाद कहती हूँ
दुनियाँ का क्या ये कुछ भी बोलती है
मैं अपने हिसाब से जीना पसन्द करती हूँ
थोड़ी जिद्दी थोड़ी गुस्सा वाली हूँ
सबसे ज्यादा मैं खुद से प्यार करती हूँ
बुरा लगे किसी को सही बोलती हूँ
सही का साथ देने से नहीं डरती हूँ
न मुझे गुरुर न घमंड अपने आप पर है
जैसी भी हूँ अपने अंदाज़ में जीती हूँ
कोई कुछ बोले उसको नजरअंदाज करती हूं
सही बात सबका समर्थन करती हूँ
जीत जाएं या हार जाऊँ कोई फर्क नहीं पड़ता है
अपने लक्ष्य की तरफ फिर मैं बढती हूँ
अपनी कमियों को दूर करने की कोशिश है
खुद के हिसाब से जिंदगी को जीती हूँ [….]
— पूनम गुप्ता