लघुकथा

लघुकथा – घंटी

     कस्बे के मेले में आये  मध्यमवर्गीय परिवार के 14 वर्षीय प्रकाश की नजरें अचानक रिमोट   से चलने वाली घंटी पर पडी । उसे लगा ये तो बहुत अच्छी चीज है । बहुत काम की है । उसने खरीद लिया उस घंटी को । घर जाते हुए सोच रहा था प्रकाश  कि पापा को गिफ्ट करूंगा बहुत खुश होंगे । उनके बहुत काम आयेगी ।

        घर पहंचते पहुंचते शाम हो गई थी  प्रकाश को बहुत भुख लग रही थी । जाते ही माँ से खाना मांगा लैकिन घर में बडा बवाल मचा हुआ था । बूढे दादाजी जो बहुत बीमार रहते थे और चलने फिरने में असहाय थे  जिन्हे घर की तीसरी मंजिल पर एक कमरे में रखा हुआ था उन्हेँ आज शाम का खाना  पहुंचाना सब भूल गये थे । बडी देर बाद याद आई थी उनकी  ।जब उसके पापा खाना खाके उठते हुए दादाजी के खाने के बारे में पूछ रहे थे तब ।बस यही गडबड होने से पापा उसकी अम्मा पर नाराज हो  रहे थे ।

 ‘‘तुम लोग घर के बडे बूढों के खाने का भी ध्यान नहीं रख पा रहे हो ‘‘।                       लैकिन बाबूजी भी तो याद दिला सकते थे टाइम पर । उनको अच्छी भली घंटी की सुविधा दे रखी है । कोई भी तकलीफ हो बजा दिया करे घंटी ।  अब मैं तो बार बार तीसरे माले पर चढने से रही । और उनको यहां नीचे रख भी नहीं सकते उनके सारे शरीर से  अजीब सी गंध आती रहती है |
              बाबूजी कह रहे हैं वो एक घण्टे से घंटी बजा रहे हैं , कोई नही सुन रहा उनकी धंटी की आवाज ।

    अरे मुई ये घंटी की आवाज भी तो मरी मरी निकलती है । बराबर सुनाई ही नहीं देती । प्रकाश की अम्मा के चेहरे पर कोई ग्लानि बोध नहीं था ।                                                     अरे भाई ध्यान रखो हमारे पिताजी का । थोडे दिन के मेहमान हैं वो तो । प्रकाश के पापा की नजर प्रकाश पर पडी क्युं बिटवा तुम भी ध्यान नहीं रखते अपने दद्दा का फिर हम बूढे हो गये तो हमारा क्या ध्यान रखोगे ?

   नहीं पापा हम पूरा पूरा ध्यान रखेंगे आप का और अम्मा का ।

 अच्छा ! वो कैसे ?

इ देखो प्रकाश ने अपने झोले से रिमोट से चलने वाली घंटी निकाल कर बताई ‘‘ हम अभी से इन्तजाम कर लिये हैं ‘‘ ।                                                                                        इ का है ? प्रकाश के पापा को कुछ समझ नहीं आया ।

     वो जब आप और अम्मा  भी दद्दा जैसे बूढे हो जायेंगे ना और हम आपको भी तीसरी मंजिल पर रखेंगे तो आपको ये रिमोट वाली घंटी गिफ्ट में देंगे । इसकी आवाज भी बहुत तेज है और बजाने मे भी आसान देखो देखो । प्रकाश ने रिमोट वाली घंटी पापा की ओर बढाई और यह सुनते ही  अम्मा की नजरेँ प्रकाश के चेहरे पर ही जम चुकी थी   और पापा के हाथ की तम्बाखु बिखर चुकी थी । अम्मा पापा दोनो पत्थर जैसे खडे रह गये थे । प्रकाश को कुछ समझ नहीं आया था  कि क्या हुआ है ? उसने ऐसा क्या कह दिया ?

— महेश शर्मा

महेश शर्मा

जन्म -----१ दिसम्बर १९५४ शिक्षा -----विज्ञान स्नातक एवं प्राकृतिक चिकित्सक रूचि ----लेखन पठान पाठन गायन पर्यटन कार्य परिमाण ---- लभग ४५ लघुकथाएं ६५ कहानियां २०० से अधिक गीत२०० के लगभग गज़लें कवितायेँ लगभग ५० एवं एनी विधाओं में भी प्रकाशन --- दो कहानी संग्रह १- हरिद्वार के हरी -२ – आखिर कब तक एक गीत संग्रह ,, मैं गीत किसी बंजारे का ,, दो उपन्यास १- एक सफ़र घर आँगन से कोठे तक २—अँधेरे से उजाले की और इनके अलावा विभिन्न पत्रिकाओं जैसे हंस , साहित्य अमृत , नया ज्ञानोदय , परिकथा , परिंदे वीणा , ककसाड , कथाबिम्ब , सोच विचार , मुक्तांचल , मधुरांचल , नूतन कहानियां , इन्द्रप्रस्थ भारती और एनी कई पत्रिकाओं में एक सौ पचास से अधिक रचनाएं प्रकाशित एक कहानी ,, गरम रोटी का श्री राम सभागार दिल्ली में रूबरू नाट्य संस्था द्वारा मंचन मंचन सम्मान --- म प्र . संस्कृति विभाग से साहित्य पुरस्कार , बनारस से सोच्विछार पत्रिका द्वारा ग्राम्य कहानी पुरस्कार , लघुकथा के लिए शब्द निष्ठा पुरस्कार ,श्री गोविन्द हिन्दी सेवा समिती द्वाराहिंदी भाषा रत्न पुरस्कार एवं एनी कई पुरस्कार सम्प्रति – सेवा निवृत बेंक अधिकारी , रोटरी क्लब अध्यक्ष रहते हुए सामाजिक योगदान , मंचीय काव्य पाठ एनी सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से सेवा कार्य संपर्क --- धार मध्यप्रदेश – मो न ९३४०१९८९७६ ऐ मेल –mahesh [email protected] वर्तमान निवास – अलीगंज बी सेक्टर बसंत पार्क लखनऊ पिन 226024