सोरठा छंद – माघ-स्नान वृत
पावन बहुत प्रयाग,चलो करें वंदन अभी।
गुंजित सुखमय राग,रहें हर्षमय हम सभी।।(1)
कितना चोखा मास,कहते जिसको माघ हम।
जीवित रखता आस,हर लेता हर ओर तम।।(2)
तीर्थ सुपावन नित्य,माघ माह की जय करो।
खिल जाये आदित्य,सदा नेहमय लय वरो।।(3)
गंगा में हो स्नान,जीव करे यश का वरण।
मिलता नित उत्थान,तीर्थराज में जब चरण।।(4)
देता माघ सुताप,गंगा माँ की जय करो।
करो तेज का माप,पापों का सब क्षय करो।।(5)
करना चोखे काम,कहे माघ का माह नित।
पूजन सुबहोशाम,करता सबका नित्य हित।।(6)
देती है आलोक,माघ माह की चेतना।
परे करे सब शोक,हर लेती सब वेदना।।(7)
गाओ मंगलगीत,माघ माह कहता हमें।
प्रभु बन जाएँ मीत,सुमिरन करना नाथ को।।(8)
जीवन हो आसान,छँट जाता सारा तिमिर।
बढ़े भक्त का मान,बस जाता पावन शिविर।।(9)
गंगाजल की शान,कहता शब्द प्रयाग नित।
पूर्ण सभी अरमान,सबको फल मिलता उचित।।(10)
आओ ऐ संतान!,गंगा का जल कह रहा।
युग-युग से गतिमान,पावनता ले बह रहा।।(11)
कल्पवास में सार,कभी न तजना धर्म को।
फैलेगा उजियार,समझो सारे मर्म को।।(12)
आशीषों में वेग,भक्त समझता दिव्यता।
करो धर्म के नेग,हर पल होगी भव्यता।।(13)
कभी न करना पाप,वरना सब मिट जायगा।
जीवन होगा शाप,जो नहिं धर्म निभायगा।।(14)
कहता हमसे माघ,बन जाओ मानव सरल।
यदि तुम होगे घाघ,तो पीना होगा गरल।।(15)
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे