शहर में दंगा
सुना है आज शहर में कोई दंगा हुआ है,
आज छोटा नहीं बहुत बड़ा पंगा हुआ है,
कैसे कैसे बदल रहे हैं हालात,
ऐसे लग रहा है जैसे आम आदमी का जीना महंगा हुआ है।
जिस प्रदेश में गाली देना भी बुरा मानते थे लोग,
उस प्रदेश में अब हथियारों से भी हमला होने लगा है,
आखिर क्यों बेच रहा ज़मीर आदमी अपना ,
क्या देवभूमि में जन्म लेना गुनाह हुआ है।
जैसे जैसे हो रहे हम विकसित,
वैसे वैसे क्यों किसी की सोच हो रही विकृत,
क्या ये नशा आ रहा इंसानियत के बीच में,
क्यों इंसान इंसान का दुश्मन बना हुआ है।
जिस प्रदेश में लोग चैन की नींद सोते थे कभी,
वहां अब लूटपाट चोरी डकैती,
शराब और चिट्टा आम हो रहा रहा है,
कैसे बचाएं आखिर नई पीढ़ी को इनसे,
आने वाले समय में ये बहुत बड़ा स्कैम हो रहा है।
स्वरचित एवम अप्रकाशित रचना
— डॉ जय अनजान