मुक्तक/दोहा

मुक्तक

डुबोकर स्वेद में तन को, कई दीपक जलाये हैं
दबाकर नींव में तन को, शिखर अगनित सजाये हैं
मेरी साँसों की सुरभि से, चमन के गुल महकते हैं
नये युग का दधीचि, स्वर्ग धरती के बचाये हैं।

— शरद सुनेरी