कितना मुश्किल है
एक लंबे अरसे से
करती रही थी वह
मिलने की फरमाइश
वक़्त टालता रहा था
हमारे मिलने को
उसने फिर कहा-
बस बातें ही करते हो
मिलना कब होगा तुमसे
फिर वक़्त ने
कर दिया प्रबंध मिलने का
और तय हुआ समय, स्थान सब
वह तय समय मिलने पहुँच गयी थी
उसने चुना होगा बहुत सी पोशाको में से
किसी एक को
घण्टों देखा होगा खुद को आईने में
उसकी चुनी हुई पोशाक में वह
षोढसी लग रही थी
उसे इंतज़ार करते हुए
मैंने निहारा था कुछ पल
पास जाकर बढ़ाया था हाथ
उसने थाम लिए अंगुली के पोर
अपनी अंगुलियों में
हम बढ़ चले
एक केफिटेरिया की ओर
बैठने के बाद वो
देखती रही थी मुझे
एक टक
बातों के बीच
यकायक आ जाता एक मौन
उसे लगा जैसे मेरे मौन हो जाने में
कोई तीसरा आ उपस्थित हुआ है
उसने कहा- खुश नहीं हो तो चले वापिस
मैं झेंप गया उस पल
हॉट कॉफी के कप
बढ़ा न पाए मन की गर्माहट
उसने असहज हो, कहा-
कितना मुश्किल है
टूटे दिल इंसान से डेट करना
उफ़्फ़ कैसे ढोते हो
खुद के अंदर दो-दो प्रेमी
ऐसा करो, जब
उस तीसरे शख़्स के बिना आ पाओ
वो समय तय करना मिलने को
पुरानी प्रेमिका को हृदय में रख
नहीं कर पाओगे डेट
और मैं उसकी अंगुली के पोर
देखता रहा एकटक
मेरे हाथ बढ़ गए
उन्हें फिर से छूने को।
— संदीप तोमर