गीत/नवगीत

चाहत

किसी उदास चेहरे पर हँसी का रंग चढाए
चलो इस बार होली आप हम ऐसे मनाएँ

सभी घर में बनें पकवान पर कुछ घर हैं ऐसे
जहाँ भूखे बिलखते रो रहे मासूम बच्चे
चलो इनको चखाएं स्वाद गुझियों का
के इनको भी मिले वह स्वाद जो इनको हँसाए
चलो इस बार होली आप हम ऐसे मनाएँ

गले इनको लगाकर रंग भरे जीवन में इनके
चढे टेसू की रंगत गुलाबों की महक से ये भी मह्के
अनाथालय वा वृद्धाश्रम के जैसी न जगह इस जहाँ में
चलो जन – जन में आत्मियता ऐसा रंग चढाएं
चलो इस बार होली आप हम ऐसे मनाएँ

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016