बसंत के देवदूत
लल्लू जी ने सुना था ..जीवन में बसंत का आना जाना एक सामान्य घटना है । पर लल्लू जी को कभी नहीं लगा कि बसंत का आना-जाना एक सामान्य घटना रहा होगा।दरअसल जिन चीजों के बारे में हम लोगों को पता नहीं होता है उसे सहज ही अद्भुत और बड़ा मान लेते हैं। और लल्लू जी कोई बड़े आदमी तो है नहीं सामान्य मिडिल क्लास इंसान हैं । और मिडिल क्लास बसंत के बारे में भला क्या ही जान पायेगा । उस जीव ने अपने पूरे जीवन में बसंत यदि देखा हुआ होगा तब तो उसे बसंत का सुखद अनुभव हो पाएगा। मिडिल क्लास बसंत को सिर्फ किताबों में किस्सों में कहानियों में पढ़ता है। हकीकत में उसने कभी बसंत देख ही नहीं तो वह बसंत को परिभाषित भला कैसे करें। उससे बसंत के बारे में पूछना वही बात हो गई एक गूंगे से बोलने का सुख पता करना।
हा जीवन भर पतझड़ का सामना करता है इसीलिए पतझड़ के बारे में बहुत अच्छी तरीके से उसे पता रहता है।लल्लू जी को बसंत के ऊपर स्कूल कॉलेज में खूब निबंध लिखने को मिला जीवन में उनका बसंत से इतना ही परिचय रहा है। इसके अलावा ना बसंत ने ना उनको देखा ना उन्होंने बसंत को देखा। लल्लू जी के घर बसंत एक तारीख को आता है और दस तारीख होते-होते चला भी जाता है। महीने भर बसंत को अपने घर में टिका ले ऐसी मिडिल क्लास की औकात कहां होती है ।
लल्लू जी बसंत को कविताओं में पढे थे जहां कवि अपने बसंत में कविताओं मे भंवरे गुनगुना देते हैं तो फूल को मुस्कुरा देते हैं … जैसा कवि सोहनलाल द्विवेदी
कहते हैं —
“आया वसंत, आया वसंत,
सरसो खेत में उठी फूल
बौरे आंमो में उठी झूल
बेलो में फूल नए फूल,”
इतना पढ़ने के बाद उन्हें पता चला बसंत आम के पेड़ पर भी आ सकता है सरसों के खेत में भी आ सकता है। वरना उन्होंने तो बसंत को मच्छरों की आमद के रूप में देखा, टैक्स भरने के महीने के रूप में देखा, खर्चों की बढ़ोतरी के रूप में देखा।
बसंत कहीं भी घुसपैठ कर सकता है खेत, खलिहान, बाग- बगीचे ,सड़क, रेल -पुल पटरी कहीं भी आ सकता है । उसके आने की कहीं भी मनाही नहीं है। वसंत ऋतुराज है उसके मन के ऊपर है सरसों के खेत में आए , टेसू के फूल के ऊपर आए या पुल के ऊपर आए और सभी जगह आने जाने को तो लल्लू जी प्रमाणित नहीं कर पाए। लेकिन पुल के ऊपर आने वाले बसंत को वह देख भी सकते हैं सुन भी सकते हैं समझ भी सकते हैं।
लल्लू जी के मतानुसार एक बार किसी पुल का निर्माण हो जाता है तो पुल पर बसंत ही वसंत रहता है। और यदि पुल दो राज्यों को जोड़ता हो और वह भी यूपी और बिहार जैसे राज्यों को तब तो उस पुल पर बसंत लहक -लहक कर खिलखिला- खिलखिला कर ठेकेदारों के लिए आता है.. पुलिस के लिए आता है । आम जनता का बसंत इनकी जेब में चला जाता है।
उसके दोनों छोरो पर बैठे पुलिस पिकेटो मे बसंत के देव दूतों को उन्होंने बहुत करीब से देखा सुना जाना समझा है। जब पुल के ऊपर एक बार वसंत आ जाता है तो फिर कभी नहीं जाता क्योंकि बसंत के आने का रास्ता तो है पर जाने का रास्ता अभी तक नहीं बना है ना बनने की संभावना है। और ना ही कोई बनवाने में ऊपर से नीचे तक रुचि ही दिखाता है। बसंत गरीब और आम जनता के जरिए इन लोगों के पास आता है.. और गरीब तो सबके हैं बस गरीब का कोई नहीं है।बसंत लहक कर सिर्फ बड़ी-बड़ी कोठियां में, और बड़े-बड़े धन्ना सेठ के पास ही आता है। और गरीब के पास आकर भी भला वह क्या कर लेगा।
— रेखा शाह आरबी