लघुकथा

पार्सल

रिया ने नेहा से कहा “रिसेप्शन पर तुम्हारा पार्सल आया है जाकर ले लो।”

नेहा सोचते हुए जा रही थी पता नहीं किसने भेजा है। वो पार्सल कमरे में लेकर आई और जल्दी जल्दी खोलने लगी। उसमें दो तीन डब्बे थे एक डब्बे में गोंद के लड्डू और दूसरे डब्बे में कुछ नमकीन थे, साथ ही कुछ रंग -बिरंगी दुप्पटे थे। पार्सल के सामान को देखकर नेहा की आंखें नम हो गई।

नेहा की मां को गुजरे कई साल हो गए , तीन साल से वो होस्टल में रह रही हैं आज तक उसके लिए कभी कुछ नहीं आया।उसके सारे दोस्तों के घर से हमेशा कुछ -न -कुछ आता था।ये देखकर वो हमेशा उदास हो जाती थी।

“बेटा पार्सल मिला क्या”

“जी पापा मिल गया” कहते कहते नेहा थोड़ा भावुक हो गईं

“पसंद आया”

“जी”

“आपने ये सब कैसे बनाया”नेहा ने पूछा

“अरे मैंने नहीं बनाया,पड़ोस की सरला आंटी से बनवाया।

तुम्हारी मां की कमी तो मैं पूरी नहीं कर सकता लेकिन थोड़ा -सा दूर कर सकता हूं।” कहते हुए नेहा के पापा भी भावुक हो गए।

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P