कविता

सच्ची होली 

तन रॅंगा बहुतों ने

मन जो रॅंगे 

तब हो सच्ची होली।

बेशक ! कपड़े- लत्ते न भींगे

जब मन भींगे

तब हो सच्ची होली ।

जात-पात का भेद मिटे 

ऊंच-नीच का भाव हटे

तब हो सच्ची होली ।

लाल -गुलाल सा 

हर हृदय रंगे और मॅंहके 

तब हो सच्ची होली ।

मन में द्वेष, बैर -भाव जो रहा भरा

फिर कोरी की कोरी होली 

हृदय से हृदय जो रंग जाये

तब हो सच्ची होली ।

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111