सपने
“आज विधिता का पहला कहानी संग्रह “मेरे सपने” छपकर आ गया है.” उसकी सास मेरी सहेली पार्वती गोयल का फोन था.
“अरे वाह, बहुत खुशी की बात है!”
“लीला जी, इसका श्रेय तो आपको ही जाता है. बाकी बात शाम को पॉर्क में पॉर्टी पर.” उसने फोन रख दिया.
मेरे सामने पांच साल पहले की रील चलने लगी.
पार्वती मेरे ब्लॉग्स पढ़ती थी और प्रतिक्रिया भी लिखती थी.
“विधिता, लीला जी ने एक कहानी शुरु की है, उसको गुरमेल भमरा ने आगे बढ़ाया है, आगे तुम भी बढ़ा दो.” एक दिन उसने अपनी बहू से कहा.
“मम्मी जी, आंटी के सामने मेरा लिखना कहां टिकेगा!”
“कोशिश तो करो, संकोच करने से क्या काम बनेगा?”
विधिता ने कहानी पूरी की और वह कहानी सबको बहुत पसंद आई. हो गई कहानी-संग्रह की शुरुआत!
संकोच छोड़ने से ही उसके सपने पूरे हुए.
— लीला तिवानी