आज से संकोच खत्म!
“दीनानाथ जी, आप बहुत कम बोलते हैं, कोई समस्या?” बुजुर्ग-समूह में बैठे उनके मित्र ने पूछा.
“कोई सठियाने का ताना न मार दे, इसलिए चुप रहना ही भला!” जवाब मिला.
“देखो, मैं मनोवैज्ञानिक बाद में हूं, तुम्हारा मित्र पहले हूं. कहो तो कुछ नए शोध की बात बताऊं!”
“हां-हां बताइए न!” सभी बुजुर्गों ने एक साथ कहा.
“वरिष्ठ नागरिकों को ज्यादा बात करने से कम से कम तीन फायदे हैं.” सभी सचेत हो गए.
पहला: बोलना मस्तिष्क को सक्रिय करता है और स्मृति को भी बढ़ाता है.
दूसरा: बोलने से तनाव दूर होता है.
तीसरा: बोलने से चेहरे की सक्रिय मांसपेशियों और गले का व्यायाम होता है, फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है, चक्कर आना, घुमनी और बहरापन आदि का जोखिम कम होता है.”
“आज से बोलने में मेरा संकोच खत्म करना पक्का!” दीनानाथ जी उत्साहित होकर कहा.
— लीला तिवानी