लघुकथा – कवरेज से बाहर
“अरे!तू तीन दिनों से घर नहीं आया।कहाँ था?तुझे बिल्कुल हमारी परवाह नहीं है।तेरे पिताजी तेरे लिए कितनी चिंता कर रहे थे।पता भी है तुझे?कितनी बार तुझे फोन किया पर हर बार तेरा मोबाइल कवरेज से बाहर ही बता रहा था।”
माँ ने चिंतित स्वर से अपने इकलौते पुत्र से पूछा।
“माँ, आप मेरी चिंता न किया करें।अब मैं बड़ा हो गया हूँ।” यह कहकर पुत्र मोबाइल में व्यस्त हो गया।
“हां, पर तुझे बताकर तो जाना चाहिये।यह घर है , कोई सराय नहीं।”माँ भुनभुनाई।
“माँ,तुम समझती क्यों नहीं? मेरी भी दुनिया है।मेरे भी सपने हैं। बचपन में मैं आपकी हर बात मान लेता था पर आज आप लोग मुझे बांध कर नहीं रख सकते।”पुत्र ने क्रोध से कहा।
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।माँ ने दरवाजा खोला।पुलिस दरवाजे पर खड़ी थी।
“क्यों क्या हुआ?” माँ ने घबराये स्वर से पूछा।
“आपका बेटा कहां है? उसके नाम का अरेस्ट वारंट है। वह ड्रग्स का धंधा करता है।”एक पुलिस वाले ने कहा।
“क्या? हे भगवान!” कहती हुई माँ धम्म से धरती पर बैठ गई।
उसने अंदर कमरे में बैठे हुए पुत्र को फोन किया पर उसके मोबाइल में यही आवाज आई -“जिस व्यक्ति को आप फोन कर रहे हैं।वह कवरेज क्षेत्र से बाहर है।”
पुलिस घर के अंदर तलाशी ले रही थी।कुछ ड्रग्स के पैकेट उनके हाथ लगे पर पुत्र फरार हो गया था।
माँ धरती पर पड़ी दुखी मन से बुदबुदा रही थी-“बेटा तो हमारी कवरेज से बाहर हो गया है।”
— डॉ. शैल चन्द्रा