लघुकथा – निर्वासित
आज दादी माँ को पूरे एक साल बाद वृद्धाश्रम से घर लाया गया क्योंकि दादा जी का वार्षिक श्राद्व था। दादा के गुजर जाने के बाद से ही दादी निर्वासित थीं।
घर के बच्चे दादी के चले जाने से उदास रहते थे किंतु आज दादी मां का प्यार उन बच्चों के लिए उमड़ रहा था।वे बच्चों के लिए एक टोकरी मीठे अमरूद लेकर आईं थीं।सब बच्चे उन्हें घेर कर बैठे थे।कोई उनके गालों को छू रहा था तो कोई उनसे लिपट गया था।दादी मां सबको प्यार से गले लगा रहीं थीं।
बच्चों की मम्मी यह दृश्य देखकर मन ही मन ग्लानि का अनुभव कर रही थी कि उन्होंने जबरजस्ती ही दादी को देखभाल नहीं कर सकने के बहाने वृद्धाश्रम भेज दिया था पर बच्चों के मुख पर उत्साह और प्रसन्नता देखकर उन्हें अपने निर्णय पर दुःख हो रहा था।उन्होंने फैसला किया कि अब दादी वृद्धाश्रम नहीं जाएगी बल्कि हमेशा घर में रहेगी।
मम्मी ने बच्चों से कहा-‘अरे बच्चों अब तो दादी को छोड़ो ।अब दादी कहीं नहीं जाएगी वो हमेशा हमारे साथ ही रहेगी क्योंकि बुजुर्गों का साथ परिवार के लिए अमृत तुल्य है।”
यह सुनकर सब बच्चे खुशी से ताली बजाने लगे।
— डॉ. शैल चन्द्रा