गीतिका
किसी से गम कभी इजहार करते क्यों
खड़ी तुम दर्द की मीनार करते क्यों
बुझे कितने दिये, फिर भी जलाने इक
दिया, फिर से नहीं तैयार करते क्यों
लुटी इस ज़िंदगी को फिर से सजाने तुम
बढ़ाया अब नहीं रफ़्तार करते क्यों
अभी बाजार सजता हर जगह देखो
मगर इस देह का व्यापार करते क्यों
छिपा इस बंद मुट्ठी में सभी कुछ है
इसे फिर खोलने, इंकार करते क्यों
— मांगन मिश्र ‘मार्त्तण्ड’