दुर्गा पूजा से किसको होता है वास्तविक लाभ?
इन दिनों नव रात्रे चल रहे हैं ,नवरात्रे मुख्य रूप से दुर्गापूजा का पर्व है जिसमें दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा की कहानी यह है की देवी दुर्गा ने शक्तिशाली असुर राजा महिषासुर का वध किया था । इस कहानी को के पात्र महिषासुर को लेके पिछले कई सालो से एक विचार यह प्रकट किया जा रहा है की देवी दुर्गा ने महिषासुर का छल से वध किया था ।
वैसे देखा जाए तो यह कहानी पुराणों में वर्णित देवासुर संग्राम( देवता और असुरो का संग्राम) की ही एक कड़ी लगती है जिसमे छल और बल से युद्ध जीतने की कोशिशे होती थी।
पर कुछ लोग खास कर झारखण्ड / बस्तर जिले के आदिवासी गण अपने को महिषासुर का वंसज मानते हैं, ऐसे लोगो ने जो जे एन यू में शिक्षा ग्रहण करते हैं या शिक्षक हैं उन्होंने कोलेज में ‘ महिषासुर डे’ मानाने का आयोजन करने की बात भी कई बार पुरजोर शक्ति से कही है। महिषासुर डे मानाने वालो का कहना है की महिषासुर पशु पालक समाज से था और इस हिसाब से वह यादव था और देवी दुर्गा जो की आर्यो से मिली हुई थी उन्होंने अनार्य महिषासुर राजा को छल से मारा क्यों की आर्य उस से सीधा युद्ध नहीं कर सकते थे।
खैर, इस कहानी में कितनी सच्चाई है यह तो वही लोग जाने पर जब कोई तटस्थ होके दुर्गा सप्तशती पढ़ेगा जिसमें देवी दुर्गा और महिषासुर की कहानी है तो उसे सारी बात समझ आ जाएगी।
इस ग्रन्थ में 13 अध्याय हैं, जो इस प्रकार हैं-
पहले अध्याय में विष्णु का असुरो से युद्ध है।
दुसरे अध्याय में महिषासुर की सेना का वध का वर्णन है और देवासुर संग्राम का सौ साल तक चलना बताया है,इसी अध्याय में सभी देवताओं के तेज से देवी दुर्गा का प्रकट होना बताया गया है।
तीसरे अध्याय में देवी दुर्गा द्वारा असुरराज महिषासुर का वध है।
पर मुख्य ध्यान देने वाले जो अध्याय हैं वे हैं 12 और 13 इसमें देवी दुर्गा अपने भक्तो की सर्व मनोकामन पूर्ण करने का आश्वासन देती हैं।
इन दोनों अध्यायों में देवी हवन,धूप, दीप , गंध, मिष्ठान, पशु, भोजन, द्र्व्यादी से पूजा और फिर ब्रह्मण को भरपूर दान आदि देने का जो निर्देश अपने भक्तो को देतीं है वंही से सारी कहानी समझ आनी शुरू हो जाती है।
देवी आश्वासन देती हैं उनकी कथा सुनने से सारे पाप धुल जाते हैं ,संसार की समस्त वैभवशाली वस्तुए भक्तो की झोली में आ गिरती हैं।
ब्रह्मण द्वारा पुजार्चना करवाना , कथा बंचवाना आदि आवश्यक है तभी इच्छित फल मिल सकता है।
इसकी पुष्टि के लिए तेहरवें अध्याय में राजा और वैश्य द्वारा व्रत रखने और इच्छित फल प्राप्त होने की कथा भी जोड़ दी है।
तो, पाठक मित्रो आप सब लोग समझ ही गए होंगे की वास्तव में इन कथाओं से फायदा की वर्ग का होता है? हो सकता है की इन मिथकों में थोड़ी बहुत सच्चाई रही हो पर उन थोड़े सच को लेके कल्पनाओ का ऐसा जाल बुन दिया गया की जो सिर्फ एक वर्ग विशेष के रोजीरोटी का जरिया बन के गया ।
केशव जी सही हो एकता है की महिषासुर यादव समाज का हो…कृष्ण भी यादव समाज के थे …..परन्तु एक असुर था एक भगवान् ..इसे क्या कहेंगे आप…. अच्छाई द्वारा… बुराई के विनाश से अच्छाई की प्रतिष्ठा के प्रतीक ही हैं ये सारे पौराणिक युद्ध ….यहाँ देव व असुर में कोइ भेद-भाव नहीं होता था…अन्यथा असुर राज बलि को इंद्र का पद कैसे मिलता ..जिसका गुणगान आज भी सभी समाजों में शादी-विवाह आदि में किया जाता है ..”.येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्र महाबलो” के मन्त्र द्वारा….फिर शिव जी तो सदैव ही देव व असुरों में कभी भेद भाव नहीं करते थे …वे स्वयं पाशुपत -वनचारी व्यवस्था के जनक व पालने वाले , मानने वाले थे ….उनकी पत्नी उसी व्यवस्था के महिषासुर-यादव की अकारण ह्त्या क्यों करतीं …….
विजय जी ने सही कहा …सचिन जी… भगवान् कौन है ..क्या है ..किसे भगवान मानें ..क्या यह जानना कोइ भी, किसी आम इंसान के वश में है ..जब तक की कोइ विद्वान् न बताये …अदालत में क्या तर्क करना चाहिए या क्या दवा लेना है यह विशेषग्य ही बता पाता है ….बस विशेषज्ञों को अपने कार्य का विशेषज्ञता का अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए …जैसे आजकल चिकित्सक…वकील…अफसर सभी अपनी स्थिति का लाभ उठाते हैं ..वैसे ही पंडित व धर्म गुरु भी अनाचार में लिप्त होगये हैं ….परन्तु इससे धर्म ..या ब्राह्मणत्व गलत नहीं ठहरता …..जैसा गांधी जी ने कहा..बुराई से घृणा करो बुरे से नहीं ….. अतः धार्मिक उत्सव गलत नहीं हैं उनमें आयी हुई विकृतियाँ हटाने का प्रयत्न करना चाहिए जो स्वयं जन मानस ने अपने स्वार्थवश लाई हुई हैं….
केशव जी, उत्सवों से किसी न किसी का लाभ होता ही है. वे मनाये ही इसलिए जाते हैं कि उनसे समाज का लाभ हो. जैसे दीपावली पर दीये, मोमबत्ती,पटाखे बनाने वालों का लाभ होता है. क्या उनके लाभ को रोकने के लिए दीपावली मनाना बंद कर दिया जाये? हमारे लिएइत्न ही पर्याप्त है कि उत्सवों से किसी को हानि नहीं होती, कोई हिंसा नहीं होती. अगर ब्राह्मणों को लाभ होता है तो आपको क्या आपत्ति है? दुर्गा की मूर्तियाँ बनाने वालों में सभी जातियों वर्गो के लोग होते हैं यहाँ तक कि मुसलमान भी. क्या उनको भी बंद या बैन कर दिया जाए?
विजयजी ,आप क्या बात कर रहे हैं ? आप जिन लोगों को उत्सवो से फायदा पहुंचने की दुहाई दे रहे है उनमे से कौन सा वर्ग ऐसा है जिसके आजीवन फायदे को धर्म ने ही आरक्षित किया हुवा है ?
आप जातिवाद और आरक्षण की खिलाफत करने वाले इसकी शुरुवात ब्राह्मणों से ही क्यूँ नहीं करते ?? और किसी को बैन करे या न करें लेकिन सदियों से ऐसे धार्मिक उत्सवो पर अपना एकाधिकार जिस धर्म व्यवस्था के आधार पर जतानेवालों के फायदे को जरुर बैन किया जाना चाहिए और इसका आधिकारिक ऐलान उन्ही धर्म के ठेकेदारों द्वारा किया जाना चाहिए जो किसको भगवान् माने किसको नहीं ये बताने का अधिकार भी उन्हें होने का दावा करते हैं !
परदेशी जी, किसको भगवान् मानें या न मानें यह व्यक्ति विशेष का अधिकार है. उसको अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए. जिस धार्मिक उत्सव से किसी को कोई हानि नहीं है, शिकायत नहीं है, उसे आप बंद कराना चाहते हैं, पहले उनको बंद करिए जिनसे हिंसा होती है, जैसे बकरीद.
केशव भाई सहमत हूँ लेकिन कोई समझना चाहता ही नहीं है.