भेद भाव
वोट से लेकर नौकरशाह तक
जातिय समिकरण में फंसे हैं सभी
कहने को समान है सभी
बस दिखावे का है भाईचारा
सवर्णों की दास्वत स्वीकार कर
मिलता है पुरुस्कार…!
जहां हुआ विरोध उनका
मिलता है दण्ड …!
उच्च नीच का भेद है हर कहीं
जिसके चुल्हे पर हुक्मरान
सेंकते हैं अपनी-अपनी रोटियां
समानत और भाईचारे के आड़ में
लड़ाते हैं जात-पात के नाम पर
नफरत के ईंधन देकर
आपस की खाई को और भी करते हैं गहरी…!
मानव मानव में फर्क है इतना
स्पर्श मात्र से होती है घृणा
कोई मानव श्रेष्ठ है
कोई तो है नीच
चमड़ी के रंगों से
तय होते हैं गुण -अगुण
जन्म से तय होती है योग्यता
कर्म की कोई विसात नहीं…. !
ऐसा बिष घुला है समाज में
जिसने खण्ड-खण्ड किए हैं मानवता को…!
अगर स्थापित करनी है मानवता को
तो लानी होगी समानता ….!
जन्म से नहीं बल्कि
कर्म से तय होनी चाहिए योग्यता
रंगभेद मिटाकर ही
समाज में स्थापित होगी मानवता ….!
— विभा कुमारी नीरजा