ग़ज़ल
हर कहीं, रिश्ते-नातों की दुकानदारी
कहां से टिकेगी फिर मेरी सच्ची यारी
न किसी से लेना न देना मस्त एकदम
अमां यार फकीरी तो है सबसे न्यारी
दिल लगाना, टूटना, रोना, वर्षों तलक
मुहब्बत की राह होती नहीं है बहुत प्यारी
बच्चों की हिफाज़त का काम कोई खेल नहीं
करना पड़ता है जैसे माली फूलों की करे क्यारी
एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए बैठे हैं लोग
‘अरुण’ समझ नहीं पाया अभी तक होशियारी
— डॉ. अरुण निषाद