ग़ज़ल
सूखते तिनके बचाओ पक्षियो।
घोंसले में लौट आओ पक्षियोे।
जो हुनर रब्ब ने तुझे बख्शा है,
ख़ूबसूरत घर बनाओ पक्षियो,
नहर के नज़दीक सुन्दर वृक्षों को,
अपनी हस्ती से सजाओ पक्षियो।
खूबसूरत देश की पहचान तुम,
एकता के गीत गाओ पक्षियो।
छु के नीले गगन को परवाज़ में,
प्यार एंव सत्कार पाओ पक्षियो,
जिंदगी भीतर मनोरंजन भी है,
डुबकियों भीतर नहाओ पक्षियो।
क्यों बिगाने देश धक्के खाते हो,
ज़िंदगी को ना रूलाओ पक्षियो।
धरत एंव अम्बर तुम्हारे बाग़ भी,
जाल वंचक का उठाओ पक्षियो।
सिर्फ मौसम की सुहानी ऋतु में,
देश परदेश आओ जाओ पक्षियो।
अपनी प्रतिभा प्रतिषिठता वास्ते,
दूसरे पक्षी बुलाओ पक्षियो।
जिस ने सूरज चांद तारे बख्शें हैं,
आस्मां के गीत गाओ पक्षियो।
ज़िंदगी दो चार दिन का खेल है,
स्वयं नाचो और नचाओ पक्षियो।
आ भी जाओ ठंड कलेजे डाल दो,
और ना बालम रूलाओ पक्षियो।
— बलविंन्दर बालम