लघुकथा

लघुकथा – संस्कार

सरकारी मकान दो मंजिले बने हुये थे जिनमें दो परिवार नीचे ऊपर रहते थे| नीचे रोहित और उसकी पत्नी और बेटी रहते थे| रोहित की पत्नी बोलती, “ये ऊपर जो रनबीर रहती है, बहुत बोलती रहती है और सोफे, बैड, और मेज़ को पहिये लगा रखे हैं, जो इधर उधर घुमाकर सुबह से ही खूब परेशान करती है| समझ नहीं आता ये ऐसा क्यों करती है, हम तो कुछ कहते भी नहीं इसको|”रोहित बोला, “कम पढ़ी-लिखी है और शायद इसको दूसरों कों परेशान करना पसंद आता है|” रणबीर कई बार जानबूझ कर कुछ नीचे गिरा देती फिर लेने आती तो दूसरे पड़ोसी के लिए भला-बुरा कहने लगती। रोहित की पत्नी फिर भी बिना बोंले चुप रहती। काफी देर भला-बुरा कहने के बाद भी जब सामने से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो रणबीर आखिर बात बदल लेती और घर चल पड़ती। रोहित की पत्नी ये सब बातें सुना पति को परेशान करती तो रोहित बोलता, “तुने जवाब नहीं दिया वो चुपचाप घर चली गई।” रोहित ने समझाया, “जब कोई तुमसे बिना मतलब उलझता है और भला-बुरा कहता है तब उसके मैले शब्दों का असर तुम्हें अपने साफ-सुथरे मन पर नहीं होने देना चाहिए। किसी के बोंले मैले अपशब्द हमें अपने मन में धारण करके अपना मन खराब नहीं करना चाहिए और न ही ऐसी किसी बात पर प्रतिक्रिया देकर अपना समय और संस्कार ही नष्ट करने चाहियें।”
— रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]