काश मेरा भी बचपन लौट आये
जब से नन्हीं परी हमारे घर है आई
जिंदगी में जैसे बहारों को खींच कर है लाई
नन्हीं चिड़िया की तरह फुदकती रहती है सारा दिन
पूरे घर में खूब उसने उछल कूद है मचाई
दादा के साथ ही बाहर है घूमती
खेलती है खाना है खाती
दादा की बाहों के झूले में झूलती
न जाने चुपके से कब है सो जाती
चुपके से पूजा के कमरे में है जाती
बाबा की खड़ाऊं को माथे से है लगाती
जब भी मिलती किसी से राधे राधे है बुलाती
अम्मा की छड़ी को इधर उधर है फैंक आती
छुपा छिप्पी खेलती पर्दे के पीछे छुप जाती
ढूंढो ढूंढो पर्दे के पीछे से आवाज लगाती
दादा को जब दरवाजे के पीछे ढूंढ लेती
पकड़ लिया बोलकर जोर से खिलखिलाती
दादा का हाथ पकड़कर घूमने है जाती
भागो भागो कहकर नन्हें कदम है बढ़ाती
तितली देख कर पकड़ने को है दौड़ती
आजा आजा कह कर पास है बुलाती
पूरा दिन घर में इधर उधर घूमती शोर मचाती
रोने लगती जब चलते चलते है गिर जाती
मेरे फूंक मारने से दर्द हो जाता छू मन्त्र
ऐसा मान कर फिर हंसने खेलने है लग जाती
तोतली जुबान में न जाने क्या क्या कहती
हमारे नहीं समझने पर बार बार वही दोहराती
जैसे में करता वैसे ही पूरी नकल उतारती
कभी चश्मा निकालती कभी फोन ले जाती
काश मेरा भी बचपन लौट आये
न चिंता न डर हर तरफ उछल कूद मचाये
कभी मम्मी कभी पापा की गोद में चढ़ जाए
कोई डांटे तो झट से दादा से लिपट जाए
— रवींद्र कुमार शर्मा