खतरे का वैश्विक स्वरुप और भारत की तैयारी
आज जब बदलते वैश्विक खतरे का स्वरूप बदलता जा रहा है, तब उससे निपटने के लिए भारत की तैयारी भी उसी के अनुरूप करने की दिशा में अग्रसर है। यह अतिश्योक्ति भी नहीं है कि खतरे से पूर्व ही उससे निपटने के लिए समय पूर्व सुरक्षा उपायों को पुख्ता किया जा रहा है। समय और वैश्विक स्तर पर नित नई चिंतित करने वाली घटनाओं पर पैनी नजर रखी जाय और अपनी तैयारी भी उसी के इर्दगिर्द हो। यह न केवल भारत की बल्कि हर संप्रभु राष्ट्र की नैतिक जिम्मेदारी है। आज जब हमारी समूची जीवन शैली तकनीक और आधुनिक विकास की मोहताज होती जा रही है,जो समय की जरूरत भी है। ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग, अंतरिक्ष में बढ़ते होड़, पर्यावरण, बढ़ते आतंकवाद और आतंकी घटनाएं, बढ़ती जनसंख्या, अंतरराष्ट्रीय विवाद और आपसी संघर्ष का लगातार बढ़ता खतरा, कोरोना जैसी बीमारी की बढ़ती आशंका, रासायनिक, परमाणु, और विश्व युद्ध की आशंकाओं के बीच पेट्रोलियम पदार्थों को लेकर उत्पन्न होने वाली आशंकाएं अपनी सुविधा से विभिन्न धड़ों में बंटते राष्ट्रीय, जाति धर्म की आड़ में बढ़ती गोलबंदियां, बनते बिगड़ते अविश्वसनीय रिश्ते और वैश्विक स्तरीय दादा का तमगा लेने की कोशिशों के बीच भारत अद्भुत रूप से सामंजस्य पूर्ण रवैया अपनाने के साथ हर स्तर पर अपनी तैयारी की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। बड़ी सूझबूझ और बिना किसी हिचक के बड़ी गहराई से छोटी छोटी अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों पर पैनी दृष्टि रखते हैऔर उसको ध्यान में रखते हुए दीर्घजीवी तैयारियों का प्लेटफार्म तैयार करने में चुपचाप लगा रहता है।आज का भारत बदल गया है, राष्ट्रीय और वैश्विक मुद्दों, समस्याओं की दिशा में विशेषज्ञ लोगों का अलग अलग बड़ा पैनल है,जो चुपचाप बिना किसी शोर के अपनी उपयोगिता को सार्थक कर रहा है।इसका श्रेय मजबूत स्थिर और पूर्ण बहुमत की सरकार और निर्णय लेने की क्षमता वाले नेतृत्व के कारण है। बीते कुछ सालों में भारत की जो नमक दुनिया ने देखी है, उसका परिणाम यह है कि अब भारत की अहमियत को श्रेष्ठ माना जाता है। जी-20 इसका ताजा प्रमाण है। रुस यूक्रेन और इजरायल हमास युद्ध में भी भारत ने दृढ़ता दिखाई है तो मानवीय सरोकारों से दुनिया का दिल जीता है।अनेक देशों से अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी कराकर अपनी कूटनीति का लोहा मनवाया, यही नहीं अन्य विदेशी नागरिकों को भी सुरक्षित उनके वतन वापसी में पूरा योगदान दिया।आज भारत को नजरंदाज करना किसी भी राष्ट्र के लिए आसान नहीं रह गया है। बाबजूद इसके भारत आत्ममुग्धता से बचते हुए आगे बढ़ रहा है।