पिता के तुल्य हैं वृक्ष, इन्हें मत काटो
हमारा देश अपनी आरण्यक संस्कृति के कारण विख्यात था। आरण्य शब्द अरण्य से बना है, जिसका अर्थ है वन। हमारे ऋषियों ने प्रकृति की सदैव आराधना की और वृक्षवेष्टित रम्य प्राकृतिक स्थलों पर तपश्चर्या की। प्रकृति के हरे-भरे स्थलों को तपस्थली बनाकर उन्होंने वृक्षों के मह्त्व का प्रतिपादन किया। भारतीय साहित्य में शस्यश्यामला वसुंधरा की महिमा का सर्वाधिक गान हुआ है।
मानव सभ्यता के विकास में पेड़ों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पेड़ों के अस्तित्व पर ही मनुष्य एवं अन्य प्राणियों का जीवन आधारित है। पेड़ एक ऐसी प्राकृतिक संपदा है, जिसका यदि विनाश होता है, तो मनुष्य जीवन की सुखद संभावनाओं की आशा नहीं की जा सकती है। कुछ ऐसे वृक्ष हैं, जिन्हें पवित्र माना जाता है – यथा पीपल का वृक्ष। अब यह सिद्ध हो चुका है कि पीपल का वृक्ष दिनरात जीवनदायी गैस आक्सीजन निकालता रहता है। धार्मिक कारणों या सांस्कृतिक कारणों से सुरक्षित ‘पवित्र कुंज’ कहलाते हैं। हमारे देश में नंदा देवी तथा चेरापूंजी में ऐसे अनेक पवित्र कुंज हैं, जहाँ मेले लगते हैं और वहाँ इन कुंजों के वृक्षों को काटना वर्जित है। उत्तर प्रदेश में वट-वृक्ष की पूजा की जाती है और नीम वृक्ष पर देवी का वास माना जाता है। राजस्थान में खेजड़ी वृक्ष को पवित्र माना जाता है।
हमारे महान आयुर्विज्ञानियों की धारणा है कि संसार में ऐसी कोई वनस्पति नहीं है जो अभैषज्य हो। संभवतः इसी नाते वृक्षों को वंदनीय कहा गया है –
धत्ते भरं कुसुमपत्रफलावलीनां धर्मव्यथां वहति शील भवा रुजश्च।
यो देहमर्पयति चान्यसुरवस्य हेतोस्तस्मै वदन्यगुरवे तरवे नमो$स्तु।
(भामिनी विलास)
भावार्थ – जो वृक्ष फूल – पत्ते और फलों के बोझ को उठाए हुए, धूप की तपन और शीत की पीड़ा सहन करता है, उस वंदनीय श्रेष्ठ तरु को नमस्कार है।
मत्स्यपुराण में कहा गया है –
दश कूप समावापी दसवापी-समोहृदः।
दश-हृद-समःपुत्रो, दश पुत्र समो द्रुमः।।
अर्थात – दस कुओं के बराबर एक बावड़ी है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब है, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है।
वृक्षों के पांच महा उपहार हैं, उनके पांच दैनिक महायज्ञ हैं –
इन्धनार्थ यदा नीतं अग्निहोमं तदुच्येत।
छाया विश्राम पथिकेःपक्षिका नियलेनं च।
पत्र मूलं त्वगादिमिर्थ औषधं तु देहिमाम,
उप कुर्वांति वृक्षस्य पंच यज्ञः स उच्यते।
ये गृहस्थों को ईंधन, पथिकों को छाया और विश्रामस्थल, पक्षियों को नीड़, पत्तों, फलों और छालों आदि से समस्त जीवों को औषधि देकर उनका उपकार ये वृक्ष करते हैं।
रोगनिवारक औषधियों के रूप में भी वृक्षों का मह्त्व आयुर्वेद में वर्णित है। वैद्यक में जड़ी – बूटियाँ, तुलसी, नीम, आंवला, जामुन आदि का उल्लेख है। भारतीय समाज में विभिन्न संस्कारों तथा व्रतादि अनुष्ठानों में वृक्षों की पूजा का विधान स्वीकृत है। भारतीय चिंतक विस्तृत जैवबोध से संयुक्त थे और उन्होंने केवल मनुष्य के लिए नहीं, अपितु वे संपूर्ण सृष्टि के प्राणियों के भविष्य के प्रति सचेष्ट थे।
आज मानवीय धरातल पर सोचें, तो स्थिति अत्यंत भयावह दिख रही है। जब से मानव सभ्यता का विकास- क्रम आरंभ हुआ है, तब से लेकर अब तक वृक्षों की संख्या में 48 प्रतिशत की कमी आई है। एक अध्ययन के निष्कर्ष से ज्ञात होता है कि विश्व में लगभग तीन लाख करोड़ पेड़ हैं. परंतु इनकी संख्या लगातार घट रही है। दुनिया में अभी भी ऐसे दुर्गम स्थान है, जहाँ जंगल विस्तार है, किंतु वहाँ मानव का पहुँचना अत्यंत दुष्कर है, क्योंकि इन जंगलों में एक तो सुगम रास्ता नहीं है, दूसरे खतरनाक वन्यजीवों की भी उपस्थिति है। अतः इन जंगलों का जलवायु पर प्रभाव तो है, किंतु ये मनुष्यों के लिए कम प्रभावी हैं। कहने आशय यह है कि जहाँ पर पेड़ होने चाहिए, वहाँ पेड़ कम या नहीं के बराबर हैं।
विश्व के सघन वनों में 24 प्रतिशत पेड़ हैं। पृथ्वी पर उपस्थित 43 प्रतिशत पेड़ उष्णकटिबंधीय हैं। इसमें चिंताजनक पहलू यह है कि पेड़ों की घटती दर भी इन्हीं जंगलों में सबसे अधिक है। इसी प्रकार 22 प्रतिशत पेड़ शीतोष्ण क्षेत्रों में हैं। जिन वन क्षेत्रों में मनुष्य की आबादी बढ़ी है, उन क्षेत्रों में पेड़ों का घनत्व भी तेजी से घटा है। वनों की कटाई, भूमि के उपयोग में बदलाव, वन प्रबंधन और मानवीय हस्तक्षेप के कारण विश्व में लाखों पेड़ प्रतिवर्ष कम हो रहे हैं।
अपने देश समेत समस्त विश्व में अनियंत्रित औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, बड़े बाँध एवं राजमार्गों का निर्माण से जंगल समाप्त हो रहे हैं। पर्यावरणविद और वैज्ञानिक, जलवायु संकट के खतरे से मानव को लगातार सचेत कर रहे हैं, किंतु उनकी चेतावनी पर ध्यान न देकर पेड़ों को काटने के दुष्कृत्य में कोई कमी नहीं आई है। यह कमी आर्थिक उदारवाद के बाद आई है और विकास के नाम पेड़ों का सफाया लगातार जारी है।
वृक्षों के लगातार कटने से जलवायु पर भारी दुष्प्रभाव पड़ा है। जल-स्रोत सूखते चले जा रहे हैं। वायुमण्डल में लगातार ‘कार्बन डाई आक्साइड’ गैस बढ़ती जा रही है और धरती के ताप में वृद्धि हो रही है। एक अध्ययन के अनुसार 2040 तक 17 से 35 प्रतिशत सघन वन मिट जाएंगे। उस समय तक स्थिति और विकराल हो जाएगी। 20 से 75 दुर्लभ पेड़ों की प्रजातियाँ नष्ट होने लगेंगी। आगामी पंद्रह वर्षों में पृथ्वी की 15 प्रतिशत प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएँगी। एक पेड़ दूसरे को विकसित करने में सहयोग प्रदान करता है। पेड़ों की विलुप्ति मानव जीवन के लिए अत्यंत घातक है।
वृक्ष मनुष्य के साथी और सहायक हैं। ये मनुष्य की भाँति ही स्नेहाकांक्षी होते हैं और सुखात्मक-दुःखात्मक अनुभूतियों को प्रकट करने का संकेत देते हैं। ये संगीतात्मक मधुर ध्वनि तरंगों को ग्रहण कर लेते हैं तथा प्रभावित होते हैं।
भारतीय अनुसंधान परिषद के आकलन के अनुसार वृक्षों की मूल्यवान उपयोगिता निम्नवत देखें –
-एक हेक्टेयर के वन से 1. 41 लाख रुपये का लाभ होता है।
– एक वृक्ष 50 वर्षों में 15. 70 लाख रुपये की लागत का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ देता है।
-एक पेड़ से लगभग 3 लाख रुपये मूल्य की भूमि की नमी बनाए रखता है।
-एक वृक्ष 2.5 लाख रुपये मूल्य की आक्सीजन और 2 लाख रुपये मूल्य के बराबर प्रोटीन को संरक्षित करता है।
-एक वृक्ष 5 लाख रुपये मूल्य के समतुल्य वायु तथा जल प्रदूषण नियंत्रण करता है।
-एक वृक्ष 2. 5 लाख रुपये मूल्य के बराबर की भागीदारी पक्षियों, जीव – जंतुओं एवं कीट – पतंगों के आश्रयस्थल को उपलब्ध कराने के रूप में कार्य करता है।
-एक स्वस्थ वृक्ष जो शीतलता देता है, वह 10 वातानुकूलित संयंत्रों के 20 घंटे लगातार चलाने के बराबर होता है।
-घरों के आस- पास लगे पेड़ भी वातावरण को शीतल करते हैं। ये पेड़ वातानुकूलन की आवश्यकताओं को 30 प्रतिशत तक घटा देते हैं। इससे 20 से 30 प्रतिशत तक बिजली की बचत होती है।
-एक एकड़ क्षेत्र में लगे वन, छह टन कार्बन- डाई आक्साइड अवशोषित करते हैं। इसके विपरीत चार टन आक्सीजन उत्पन्न करते हैं, जो 18 व्यक्तियों की वार्षिक आय के बराबर होती है।
वृक्षों की महती उपयोगिता के कारण ही भारतीय वाङ्मय में तरुवंदना की गई है, जिसमें वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि अनेक देवताओं का वास बताया गया है –
मूले ब्रह्मा त्वचे विष्णुः शाखा मध्ये महेश्वरः। पात्रे – पात्रे देवानां वृक्षराज नमोस्तुते।
वृक्षों के प्रति ऐसे अप्रतिम अनुराग की छाया भी अन्य देश की संस्कृति में सर्वथा दुर्लभ है। जहाँ वृक्षों की पूजा की जाती हो, वहाँ उनके अंधाधुंध काटे जाने का पाप घोर निंदनीय है।
प्रदूषणनाशक वृक्ष प्रदूषण को नष्ट करते हैं और पर्यावरण को स्वच्छ, साफ एवं समृद्ध करते हैं। प्रदूषण से रक्षा के लिए वेदों में कहा गया है कि ” वन आस्थाप्यध्वम” अर्थात वृक्षारोपण करें। पीपल जैसे वृक्षों में धूल और धुआँ सोखने की असीमित शक्ति होती है। पीपल तो 4.15 प्रतिशत तक धुआँ सोख लेता है, इसलिए इसको देववृक्ष कहते हैं और इस वृक्ष को देवता मानकर इसकी पूजा की जाती है और इससे लाभ मिलता है। तुलसी, नीम, वटवृक्ष आदि हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं तथा घातक कृमि तथा कीटों को नष्ट करते हैं। इससे हमें दीर्घायु प्राप्त होती है।
आज विकास की अंधी दौड़ में हम वृक्षों को काटते जा रहे हैं और वनों के विनाश में बहुत आगे बढ़ चुके हैं। इससे वर्षा कम हो रही है, भूजल – स्तर बहुत नीचे चला गया है। जल, वायु और भूमि में प्रदूषण व्याप्त हो गया है।विषाक्त वातावरण एवं पर्यावरण असंतुलन के कारण नए – नए रोग फैल रहे हैं। हमें इसके निदान के लिए स्वयं पहल करनी होगी, लोगों को जगाना होगा। पेड़ बचेंगे तभी पृथ्वी बचेगी। हमें वृक्षों को पूजनीय मानकर केवल पूजा ही नहीं करनी है, अपितु नई पौध – रोपड़, संरक्षण एवं संवर्द्धन भी करना होगा। वृक्ष हमारे लिए जीवनतत्वों का सृजन करते हैं, इसलिए हमें भी वृक्षों के विकास में सहायक होना चाहिए। इस संदर्भ में हमारा यथेष्ट योगदान होना चाहिए।
हम सब इस संसार की एक इकाई हैं। एक अणु हैं। हम वृक्षों के रोपड़ और संरक्षण की सही दिशा में चलने का अभी संकल्प ले लें, तभी धरती पर हरियाली बढ़ेगी और पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी –
-अपने परिजनों तथा संबंधियों को उनके जन्मदिन एवं विवाह की वर्षगाँठ पर पौधे उपहार में भेंट कर सकते हैं।
-घर के आसपास खाली स्थान पर पौधा-रोपड़ कर सकते हैं।
-पौधों को लगाना ही पर्याप्त नहीं है, उसकी देखभाल एवं संरक्षण देकर उन्हें पल्लवित करने में सहयोगी बनें।
-कागज का दुरुपयोग न करें। उसका कोई स्थान रिक्त न छोड़ें। इससे कागज बनाने के लिए पेड़ कटने से बचेंगे।
-पुराने समाचार – पत्रों को पुनर्चक्रण (रिसायकलिंग) हेतु क्रय करने वालों को ही दें। इससे रद्दी कागज से पुनः नया कागज बन जाएगा और नए पेड़ कटने से बचेंगे।
-यदि बड़ा एवं स्वस्थ पेड़ काटना आवश्यक हो, तो उसकी भरपाई के लिए पाँच – दस पेड़ अवश्य लगाएँ।
-पृथ्वी पर मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए वन, वन्यप्राणी तथा प्राकृतिक संसाधनों के विनाश को नियंत्रित किया जाए।
-कोयला, जैव ईंधन, पेट्रोलियम जैसे प्राकृतिक संसाधनों एवं प्रदूषकों के स्थान पर अक्षय ऊर्जा स्रोत जैसे सूर्य प्रकाश. पवन ऊर्जा, समुद्री लहर ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा आदि के द्वारा ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाए।
-सड़को तथा रेलवे लाइनों के दोनों ओर,धर्मस्थलों, विद्यालयों, मैदानों तथा अन्य रिक्त स्थानों पर छायादार वृक्ष लगाए जाएँ।
-बिना अनुमति हरे वृक्षों को काटने पर रोक लगाई जाए। बागों को काटकर उपलब्ध भूमि को भवन आदि बनाने पर कड़ाई से रोक लगे।
-काटे गए वृक्षों तथा वनक्षेत्र अंतर्गत खाली क्षेत्र में वृक्षारोपण करना चाहिए।
-केवल परिपक्व या सूखे पेड़ को काटना चाहिए। इससे विकासशील वृक्ष को बढ़ने का अवसर मिलेगा।
-किसी परिवार के सदस्य या परिजन की मृत्यु पर स्मृति रूप में कम से कम चार पेड़ लगाए जाएं।
वृक्षारोपण जैसे महान लक्ष्य की पूर्ति हेतु पर्यावरण तथा वन महोत्सव जैसे अवसरों पर पौध रोपण के वृहद अभियान राजकीय स्तर पर संपन्न किए जाते हैं और हजारों – लाखों पेड़ रोपित किए जाते हैं, किंतु बाद में समुचित देखभाल के अभाव में वे बड़े नहीं हो पाते। फलतः अधिकांश पौधे नष्ट हो जाते हैं। अतः धरती पर हरियाली बढ़ाने का लक्ष्य केवल सरकार के भरोसे पूर्ण होना संभव नहीं है। इसके लिए जन – जन को जुटना होगा।
धरती हमारी माँ है और हम धरती के पुत्र। आइए वैदिक ऋषियों की वाणी ‘माता भूमिःपुत्रो$हम पृथिव्यां ‘ को चरितार्थ करें। ऐसी पवित्र अवधारणा के संदेश से हम धरती को हरी – भरी बनाएँ ।
वृक्षों से भावनात्मक संबंध बढ़ाने के साथ हम उन्हें भरपूर सम्मान दें तथा उनका समुचित संरक्षण करें –
वृक्ष हमारे पिता तुल्य हैं।
जीवनदाता ये अमूल्य हैं।
काटे एक, रोप दें दस को
प्रकृति धरोहर ये अतुल्य हैं।
–– गौरीशंकर वैश्य विनम्र