ग़ज़ल
दस्तकों के दिन गये धक्के लगाना सीख लो
छोड़कर सज़दे में रहना सिर उठाना सीख लो।
एक पत्थर ताल को पूरा कंपा देगा ही देगा,
पहले अपने हाथ में पत्थर उठाना सीख लो।
सिर्फ़ पर्दा देखकर घर को है क्या पहचानना,
जानना है सच अगर पर्दा उठाना सीख लो।
लू उगलती धूप में कांटों के संग रहना सदा,
ये गुलाबी पुष्प हैं, हंसना -हंसाना सीख लो।
दुःख नहीं हैं साथ मेरे दर्द भी हैं संग नहीं,
ज़िन्दगी जश्न -ए-बहार खिलखिलाना सीख लो।
जाति – मजहब और भाषा के बहाने आये दिन,
बांटतीं जो खाईंयांं उनको गिराना सीख लो।
— वाई. वेद प्रकाश