मुक्तक/दोहा

एकादश दोहे- मां

१. पत्नी जब माता बने, मां का देते मान।
पत्नी की ही शान है, मातृ दिवस बस गान।।
2. फोटो ही हैं खिंच रहे, छपते हैं संदेश।
मिलने को मां तरसती, कब आएगा देश।।
3. बाहर मां का दिवस है, घर में है अंजान।
खाने को है तरसती, कैसा मिलता मान।।
4. घड़ी घड़ी हमने पिया, मां का पावन दूध।
खाना हम ना दे सके, वाह वाह हो खूब।।
5. ना कोई मुझको कमी, सच ना मां के बोल।
भूखी रह कर जी रही, पीकर विष के घोल।।
6. मां तो मां है आज भी, सब कुछ देती वार।
भूखी भी आशीष दे, सहे भूख की मार।।
7. सब कुछ उसको मिल रहा, झूठे बोले बोल।
सच हमसे ना कह सके, यही हमारी पोल।।
8. रोटी सुत ना दे सके, जीवन को धिक्कार।
व्यर्थ मान सम्मान है, हम हैं बस मक्कार।।
9. कितना अक्षम आज में, कितना हूं लाचार।
मां को साथ न मिल सका, नीच हुआ आचार।।
10. कदम-कदम पर अब तलक, होता आया फेल।
जीने में जीवन नहीं, जीवन जलती जेल।।
11. जननी को ही मान ना, रोटी को है रार।
जीवन का कुछ मोल ना, जीवन है बस खार।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)