कविता

जीवन की स्मृतियां

जब पीछे वक्त हमारा  छूट जाता है

जीवन की स्मृतियां याद आने लगती है 

जीवन की स्मृतियां उभर कर आ जाती है

बचपन का वो प्यारा वक्त याद आता है

कैसे हम दोस्तों के साथ मौज मस्ती करते है

स्कूल की छुट्टी में पूरे गाँव की सैर करते है

जब मन होता किसी में बाग में घुस जाते थे

पेड़ पर चढ़कर चुपचाप से आम तोड़ते थे

अपनी जिंदगी में ही मशगूल रहा करते थे

घर में सबके साथ तीज ,त्यौहार मनाया करते थे 

गाँव की हरियाली देख मन खुशी से नाच उठता था

कुँए के पानी से ही प्यास बुझाया करते थे

बिजली न होने पर भी पेड़ की हवा शीतल लगती थी

सब एक जगह एकत्रित होकर बात किया करते थे

न जाने कहाँ गए वो दिन अब जीवन की स्मृतियां है

शहरों में यह सब कुछ नहीं मिलता है.

— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश