अद्भुत कृपा-शक्ति
“हनुमान बेटा, एक बात बताओ कि, तुम्हारी पूंछ नहीं जली आग में और पूरी लंका जल गई? इसका क्या रहस्य है?” माता सीता की जिज्ञासा थी.
“लंका तो सोने की है और सोना कहीं आग में जलता है क्या?” प्रश्न पर प्रतिप्रश्न!
“फिर कैसे जल गया?”
“माता! लंका में साधारण आग नहीं लगी थी,पावक थी! यह पावक साधारण नहीं थी, यह राम जी के रोष रूपी पावक थी जिसमे सोने की लंका जली.”
“आग तो अपना पराया नहीं देखती, फिर तुम्हारी पूंछ कैसे बच गई?”
“माता! उस आग में जलाने की शक्ति ही नहीं, बचाने की शक्ति भी बैठी थी.”
”वो कौन-सी शक्ति थी?”
“माँ! हमें पता है, प्रभु ने आपसे कह दिया था कि तुम पावक महुं करहु निवासा. उस पावक में तो आप बैठी थीं. तो जिस पावक में आप विराजमान हों, उस पावक से मेरी पूंछ कैसे जलेगी? माता की अद्भुत कृपा-शक्ति ने मुझे बचाया.” हनुमान जी ने जानकी माता के चरणों में सिर रखकर कहा.
“अजर अमर गुणनिधि सुत होहू, करहु बहुत रघुनायक छोहू”. सहसा उसी अद्भुत कृपा-शक्ति के मुख से निःसृत हुआ.
— लीला तिवानी