ख़्वाब
हर रात यूँ ही गुजर जाती है l
ख़्वाब आँख-मिचोली करती है ll
कभी हम नींद में मुस्कुराते हैं l
कभी नयन नीर बहाते रहते हैं ll
लीला ख़्वाबों की अजीब होती है l
कभी अर्श से फर्श पर लाती है ll
मुफलिसी के दौर में भी कभी l
महलों का राजा भी बनाती है ll
गुदड़ी के लाल को सोने के l
पालने में रात भर झूलाती है ll
मनचले स्वभाव के ये होते हैं l
कब, कहाँ किसी की सुनते हैं
— मंजु लता