ग़ज़ल
खिलखिला उठ्ठे वक्त के मारे ।।
अश्क देखे जब आंख के खारे ।।
तौलने को चले हैं कुछ इक लोग,,,
धान वाइस पसेरी में सारे ।।
आज दिनभर ही धुंध छाई रही,,,
रात में भी नहीं दिखे तारे ।।
घर तो छोड़ा ठसक के साथ मगर,,,
दिन में ही आ गए नजर तारे ।।
ये जो दोनों जहान हार चुके,,
कौन से घाट जाएं बेचारे ।।
— समीर द्विवेदी नितान्त