कहानी

एहसास

आज महीने की शुरुआत थी ।पतिदेव राशन से भराथैला रसोई घर में रखकर पलंग पर लेट गए ।मध्यम वर्गीय परिवार के लिए माह का प्रथम दिवस बड़ा ही आल्हादित करने वाला होता है ।महीने के लंबे इंतजार के बाद रसोई के डिब्बे फिर से सजने संवरने लगे थे ।नन्ही प्रिया चॉकलेट थैली के किस कोने में है वह शोर मचा रही थी ।प्रिया को उसका चॉकलेट मिल गया था।
वह खुश होकर खाने लगी।
मैं राशन में आये सामानों के पैकेट खोलने लगी। दाल के पैकेट खोलने पर मुझे उस पर कुछ नीली स्याही से लिखा हुआ दिखा।मैं उस पुराने से कागज के टुकड़े को यूँ ही लापरवाही से देखने लगी ।तभी मुझे शायरी की लाइनें नजर आईं। मेरी आँखें तुरन्त ही पैकेट के पिछले हिस्से को देखने लगी। शायरी किसी प्रेमिका को लिखा गया था। शायरी के अंत में अंग्रेज़ी के अक्षरों में एक नाम मैंने पढ़ा।पढ़ते ही मेरे पूरे शरीर में सनसनी सी दौड़ गई। लिखा था’एहसास’।
यह शब्द मेरे पूरे वजूद को हिला कर रख दिया।मैं रसोई में खाली डिब्बों के बीच यूँ ही स्तब्ध सी न जाने कितनी देर बैठी रही। मुझे कुछ होश नहीं था।

मेरी आँखों के सामने एहसास का सुंदर मुखड़ा घूम गया। वह और मैं एक ही कक्षा में साथ-साथ पढ़ते थे।एक ही मुहल्ले में रहते थे। बाल्यकाल की वह मित्रता कब प्यार की डोर में बंधती चली गई यह हम जान ही नहीं पाए। मैं एहसास के साथ स्वप्नों की दुनिया में जीने लगी। हम कॉलेज की सीढ़ियों पर घण्टों बैठकर बातें करते।जीने मरने की कसमें खाते।किताबों के लेन-देन के बहाने खतों का आदान -प्रदान होता।
सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि दिसम्बर की एक सुबह राम मंदिर-बाबरी मस्जिद कांड ने हिंदू-मुस्लिम के बीच गहरी खाई खोद दी। हिंदू -मुस्लिम के बीच राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद वर्षों पुराना था।हिन्दू और मुस्लिम में यूं तो हमेशा फासला रहा है।कुछ राजिनीतिज्ञ इसे हवा देने का भी काम करते आये हैं फिर भी हिंदू-मुस्लिम ‘हम हिंदुस्तानी हैं’ के भाव से मिल जुल कर भारत में रहते आये हैं। हिंदू -मुस्लिम की मित्रता भी मिसाल है। एहसास की अम्मी सलमा और मेरी मम्मी सरला दोनों बचपन की सहेलियां थीं। हम लोग अपनी मम्मियों की मित्रता की वजह से और भी निकट थे। सारे मोहल्ले में हमारे दोनों परिवारों का सम्मान होता था। मैं एहसास के साथ अक्सर मस्जिद जाया करती थी और एहसास मेरे साथ मंदिर। हमारा दोनों का परिवार धार्मिक एकता का मिसाल था।
आज ऐसा क्या हुआ ?कि वर्षों का पड़ोसी धर्म नष्ट हो चुका है।वर्षों की मित्रता शत्रुता में बदल गई है। चारों तरफ आगजनी हत्याएं और लूटपाट की खबरें लगातार आ रही थी।
मेरा दिल इस घटना से बैठा जा रहा था। ऐसे में एहसास और मेरा मिलना जुलना नामुमकिन था।
उन्हीं दिनों एहसास की कॉपी में दबाए हुये मेरे नाम के खत न जाने उसके अब्बू को कहां से मिल गए? फिर क्या था कोहराम मच गया।
उसके अब्बाजान हमारी घर की देहरी पर आकर अनाप-शनाप बोलने लगे। मेरे पिता जी को यह बात नागवार गुजरी फिर क्या था दोनों के बीच विवाद होने लगा। तलवारे खिंच आई और देखते-देखते यह विवाद हिंदू-मुस्लिम का विवाद बन गया। हिंदू-मुस्लिम की यह आग पूरे मोहल्ले से पूरे राज्य में बढ़ती चली गई। सांप्रदायिकता की ऐसी आग फैली कि उस आग में हमारा प्यार,हमारी मित्रता और हमारा परिवार सब कुछ खाक हो गया।
मेरे पिताजी ने वह मोहल्ला क्या वह शहर ही छोड़ दिया। मैं बहुत रोई। एहसास से बिछुड़ने का गम मुझे खाये जा रहा था। हम जब टैक्सी में जाने लगे तो अपनी छत पर खड़ा एहसास की रोती आँखें मुझे उसके प्यार में डुबो रहीं थीं।
मैं और एहसास कहीं दूर भाग जाना चाहते थे ।जहाँ धर्म -जाति का कोई बंधन न हो पर ऐसा हो न सका।
मैं दूसरे शहर में आकर एहसास को याद कर रोती। मुझे मेरे परिवार वाले भला-बुरा कहते। मैंने अपनी सहेली प्रभा को एक चिट्ठी लिखी ।उसमें एहसास का हाल पूछा ।खबर आई कि एहसास ने आत्महत्या कर ली। यह खबर सुनकर मैं पत्थर की बुत बन गई।
यह खबर मुझे उसी दिन मिली थी ,जिस दिन मेरे फेरे होने वाले थे। मैं तो बस आंसूओं का समंदर बन कर रह गई थी।
मैंने एहसास से एक बार कहा था-एहसास,हमारा धर्म,जाति अलग-अलग है ।हम कभी एक नहीं हो सकते ।तुम मुझे भूल जाओ।
उसने मेरा हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा था-” सुमि,तुम्हें भूल जाऊं?यह सम्भव नहीं है।मैं सांस लेना भूल सकता हूँ पर तुम्हें नहीं। प्यार जाति धर्म नहीं देखता।मैं तुम्हें खुदा से बढ़कर प्यार करता हूँ।मैं तुम्हें बचपन से ही नहीं कई जन्मों से प्यार करता हूँ और करता रहूंगा।मैं अपनी जान दे दूंगा पर तुम्हें किसी और की होने नहीं दूंगा।”
मेरी आँखों से अश्रुओं की बूंदें टपकने लगी। मेरे हाथ में रखा हुआ वह कागज का टुकड़ा पता नहीं किस एहसास का था मैं नहीं जानती लेकिन मुझे एहसास हुआ कि मेरे एहसास ने प्यार में अपने को कुर्बान कर दिया था ।मैं अभागन कुछ न कर सकी। धर्म की यह दीवार दो चाहने वालों को जुदा कर गई। न जाने यह दीवार कब टूटेगी?
सच तो यह था की यह कागज का टुकड़ा अनजाने में मेरे पहले प्यार का एहसास था।

— डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- [email protected]