कविता – जीवन के चार दिन
जीवन के दिन चार हँसी खुशी से गुजारते है
किसी के दुख को हम थोड़ा कम करते है
खाली हाथ जग में आएं खाली हाथ ही जाना है
तेरा मेरा करता बंदे सब यही रह जाना है
जीवन के सफर में हम सबको चलते जाना है
जिसने जन्म लिया यहाँ से सबको एक दिन जाना है
न अभिमान करो तुम सब यही छूट जाना है
जो करते हम पाप,अन्याय सब कर्मो का लेखा है
प्रभु बैठा ऊपर सब देखा करता न्याय करता है
कोई साथी कोई अपना कभी साथ नहीं जाता है
माटी का पुतला माटी में ही मिल जाता है
किस पल क्या हो जाएं कुछ पता नहीं होता है.
— पूनम गुप्ता