कविता

कविता

तुम कहते हो बेटियाँ
सौभाग्य से होती हैं
लेकिन क्या वो सच में
भाग्य लेकर पैदा होती हैं

लगा देता है एक बाप
अपनी सारी जमा पूँजी
लेकिन क्या बेटियाँ सच में
खुशियों की फसल काटती हैं

तुमसे कोई एक कलम भी माँगें
तो देने में जान निकलती है
माँ बाप तो विदा कर देते हैं
क्या बेटियाँ सिर्फ अमानत होती हैं

परायी बेटी का दुःख दुःख नहीं
अपनी बेटी दुःखी लगती है
ताउम्र बिता देती है जो तानों में
क्यों बहू हमेशा गैर ही होती है

क्यों नहीं सोचते तुम कभी
हर बात को खुद के ऊपर रखकर
जो बातें लगती जहर बेटी के लिए
क्यों बहू के लिए वरदान लगती हैं

मेरी बेटी के लिए कुछ न कहो
वो मेरी बेटी है मेरी कोख में पली है
क्या बहू किसी की बेटी नहीं
क्यों उसको हर पल अपमान की झड़ी है

तुम कहते हो जमाना बदल रहा है
कुछ लोगों के लिए बदल रहा होगा
जिस दौर से गुजरी थी जिंदगी मेरी
आज भी हर बेटी उसी दोराहे पर खड़ी है

— वर्षा वार्ष्णेय

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017