नशे में कौन है?
इस जहां में उपलब्ध है
अलग अलग प्रकार के नशे,
हर कोई बुरी तरह से है फंसे,
किसी को पद का नशा,
किसी को मद का नशा,
किसी को झूठे प्यार का,
किसी को बढ़ते अहंकार का,
कोई सत्ता के नशे में दहाड़ रहा,
कोई कुत्ते की वफादारी को पछाड़ रहा,
इसके असर से कोई दंगा कर रहा,
कोई घूंट घूंट कहर से सिहर रहा,
कोई जातीयता का जहर भर रहा,
शोषित इस आग से मर रहा,
कोई कर रहा आस्थाओं से खिलवाड़,
कोई उड़ेल रहा जहर बेशुमार,
यहां किसको किसकी पड़ी है,
यहां सबकी अपनी हटी पड़ी है,
इन नशों से देशप्रेम का असर टूट रहा,
यहां हर कोई एक दूसरे को लूट रहा,
सुन लो लंगूरों
अपना नशा फेंको या संभालो,
हमारा वजूद इस देश से है
इतनी सी बात तो
अपनी खाली दिमाग में डालो।
— राजेन्द्र लाहिरी