उपहार
चार-पाँच स्कूली बच्चों के द्वारा छः डस्टबीन माँगने पर दुकनदार ने यूँ पूछ लिया, “क्या बात है बच्चों, सबके सब एक साथ डस्टबीन कैसे खरीद रहे हो ? लगता है तगड़ा डिस्काउंट चाहिए।”
एक बच्चे ने बताया, “हाँ अंकल जी, डिस्काउंट तो चाहिए ही हमें। पर ये हम लोग अपने-अपने घरों के लिए नहीं, स्कूल के लिए खरीद रहे हैं।”
दुकानदार ने आश्चर्य से पूछा “स्कूल के लिए ? स्कूल के लिए तो हमेशा प्रिंसिपल साहब ही आते हैं खरीददारी करने। फिर आज आप लोग कैसे ?”
दूसरे बच्चे ने बताया, “दरअसल इस स्कूल में हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी है। आज स्कूल में हमारी फेयरवेल पार्टी है। इस अवसर पर हम सभी बच्चों ने फैसला किया है कि अपनी तरफ से सभी कक्षाओं और लाइब्रेरी के लिए एक-एक डस्टबीन उपहार स्वरुप देकर जाएँ।”
दुकानदार ने उन्हें प्रोत्साहित करते हुए कहा, “बहुत ही उत्तम विचार हैं आप लोगों के। बताइए कितने प्रतिशत की छूट चाहते हैं आप लोग ?”
एक बच्चे ने कहा, “कम से कम तीस प्रतिशत की छूट तो चाहिए ही, आखिरकार एक साथ छः नग खरीद रहे हैं।”
दुकानदार ने कहा, “सिर्फ तीस प्रतिशत ? बच्चों मुझे आप लोगों को ये डस्टबीन बेचकर कुछ कमाना नहीं है, बल्कि अपना एक पुराना कर्ज भी चुकाना है। इसलिए मैं इन पर आप लोगों को पचहत्तर प्रतिशत की छूट दूँगा।”
एक बच्चे न कहा, “हम समझे नहीं अंकल ? आप किस कर्ज की बात कर रहे हैं ?”
दुकानदार ने कहा, “बच्चों, कभी मैं भी इस स्कूल का विद्यार्थी था। हमने अपने समय में फेयरवेल पार्टी में कोई उपहार नहीं दी थी, क्योंकि तब हम आप लोगों की तरह सोच ही नहीं सके थे। आज जब मैंने आप लोगों की बात सुनी, तो लगा कि अभी देर नहीं हुई है। इसलिए आप लोग मुझे भी अपना एक साथी समझ लो।”
बच्चों ने एक-दूसरे की और देखा और जोर से बोले, हुर्रे…
–– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा